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________________ { ४) 3 R उवसंत मनि भयउ उछाहु, दीनी कन्या ठयहु विवाह | ४ K बहु भगति बोल सतिभाइ, फुरिंग विजाहरू लागइ पाइ ॥ २२३॥ ४ अरजुन वह वीरू जउ जाइ, तिहि वरण जैरहु पहुत श्राह । 보 . तिहिसउ जुझ अपूरव होइ, कुसमवाण सर आपइ सोइ || २२४ ॥ ू १ R % फुगि सो वीरू विउरण खराा गयउ विलतरंग सिरि उभउ भयउ , E विरे तमाल तर हइ जहा, खरण भयरद्ध सपतउ तहां ॥ २२५॥ १ फटिक - सिला बयठी बर नारि, जपइ जाप सो वह मझारि । * तउ विजाहर पुछइ मयर, वरण मा बसइ गरि यह कम्वणु ॥२२६॥ १ २ 3 तउ वसंत मन कहइ विचारि, रतिनामा यह नूचइ नारि । प्रति सरूप सुहनाली नया, लेइ विवाहि कुम्बर परदवणु ॥ २२७॥ 3 y तब मरण मन भी उछाहु, दीनी कुवरि आढए विवाहु । फुरिण सो मया सपतउ तहा, हहि सयपंच सहोयर जहा ||२२८ ॥ ( २२३) १. तव वसंत ( ख ) २. उद्या ( ख ) ३. वोधी (क) ४. भिखि (क) ५. लागड (क) (२२४) १ (क) २. वीरजय ( क ) जनि ( ) ४. महतो (क) तिहस (क) तिहिसिह (ख) ५. होइ (क) ६. श्राफ (ख) जग (क) तलि ( २२५) १. बलि खा (क) २. विरख लता (कख) ३. (ख) ४. विरख (क) विरखु ( ख ) ५. तमालह (क) तमास ( ख ) ६. हिये (क) ७. पडतो (क) सपराउ (ख) ( २२६) १. सो (ख) २ (ख) सो (क) ( २२७ ) १. वलि वसंत (क) २. मनि ( क ) ३. करइ (क) ४. बीजी (क) ५. सुविनाली ( क ) १. मयण ( कल ) ( २२८ ) १. तबहि (कख) २. भयो (कख) ३. मोठी (कख) ४. तर उ (क) आढयो (ख) ५. खइ जइ (क) जहि सह (ख) २२४ - मूल प्रति में सिहिस शुरु के स्थान पर लिहिउ
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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