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________________ ( ४ ) रहासेण गुफा ही जहा, कुवरन्हि मयण पठायो तहा। तिहि ठा अमरदेउ हो कोइ, रूप वरह भयो खण सोइ ॥१८॥ सूबर रूप प्राइ सो भिड, मारिउ मरिण दतसलि भिडउ । पुष्प चाषु दीनउ सुरदेउ, विजहसंखु प्रापिउ तहि खेउ ॥२१॥ सवहि मयशु वण वयठउ जाइ, दुष्ट जीउ निवसइ तह प्राइ । बरण मा मयण पहुँतउ तहा, वीरू मगगोजो बांधिउ जहा ||२२०।। बाधिउ वीर मनोजउ छोड़ी, फुणि ते वशमा गए वहोडी । जहि विजाहरि एतउ कीयउ, सो वसतु खरग वंधिवि लयउ ॥२२१।। फुरिण सु मनोजउ मनविसाइ, कुम्बर मयण के लागइ पाइ। हाथ जोडि सो कहा करेइ, इदजालु विद्या दुइ देइ ।।२२२॥ (२१८) १, वारहसेन (क) वराहसेन (ख)बीरसेरण । ग) २. हहि (क) जब गयउ (ख) [ थी जहां (ग) ३. पाठया (ख) ४. जिहां (क) तिहां (ग) ५. ठर (ग) ६. हवो (क) | हुइ (ख.ग) ७. अफउ (क) भयउ (ख) भया (ग) 5. रहि (क! हइ (स) जनु (क) (२१६) १. भया (ग) २. मारई (क) मारि (ख,ग) ३. बंसल झडइ (क) . वंतूसनु झडिउ (ख) हेठि सो दोसा (ग) ४ पुहप (ख) पुधि (ग) ५. चाप (क ख) पि (ग) ६. हनद (क) दीना (ग) ७. सुरदेह (क) सुरदेवि (ख) ८. विजद (क) विजय (ख वाजि (ग) ९. प्रायो (क) प्राफिउ (स ग) १०. तिरिण जहो (क) उनि खेउ (ग) (२२०) १. उपरिण (ग) २. पयट्ठाइ (क) वरिंग (ख) पट्ठा (ग) ३. बुद्ध ' (ख) ४. पुहोम (ग) ५. केरा (ग) ६. महि (क) माहि (ख) ७. परतो (क) म. मरणोज (क) मरणोजउ (ख) (२२१) १. जण (क) २. माहि (फ) महि (ख) ३. जिणि (क) ४, विधारि (क) विज्जाहरि (ख) ५. सोतिरिग कुरि देधि लिणि लियउ (क) (२२२) १. मनोजव (क) २. मनि विहसाइ (क ) ३. लागउ (क) ४. काहस करइ (क) ले घरह (क) नोट:-ग प्रति में २२० से २२६ तक के छन्द नहीं हैं ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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