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________________ २ भणइ कुवर मुहामुह चाहि, विषमु वीरु यह मानन पाहि सोलह गुफा पठायो मयण, तह तह मिलहि वस्त्र प्राभरण।।२२६॥ मयणह पौरिशु देखि अपार, तब कुम्वरन्हि छोडिउ अहंकार ईसबहू मिलि सलहिउ तहि ठाइ, पुनवंत कहि लामे पाइ ॥२३०।। वस्तु बंध-पुन्नु वलियउ अहि संसारु । । पुन्नु सेम्वहि सुर असुर, पुन्नु सफलु अरहंत जपिउ । कत रूपिणि उर अवतरिउ, धूमकेत ले सिला चंपिउ ।। जमसंवरू त ल गयउ, कनयमाल घरितह गयउ विरिद्धि । (सोलह लाभ महंतु फलु, पुगा परापति सिद्धि ।।२३१॥ चौपई | पुग्नहि राग भोगु महि होइ, पुन्नइ नर उपजइ सुरलोड । पुनहि अजर अमर मुगपणा, पुन्नहि जाइ जीव रिंगव्दारणा ॥२३२॥ .. - - - - (२२९) १. चितई (क) पभरणहि (ख) २. एहि (क) इह (ख) ३. मन (क) माणु न (ख) ४. दिखायी (क) पठायउ (ख) ५. मरण (फ ख) ६. तिहि तिह (क) (२३०) १. छोडियउ (क) छाडियज (ख) (२३१) १. गुरुबउ (क) २. माहि (क ) ३. संसारि (कस) ४. पुन्नि (क) ५. फलइ (क) ६. जारिणउ (ख) जंपड़ (क) ७. कितु (क) ८. कित धूमकेत (क) ६. कित (क) सह (ख) १०. सिला तल (क) ११. पइ (क) चंपिउ (स) १२. कह (क) किसो पुनह प्रविड रिधि-यह पाठ 'क' प्रति में ही मिलता है। १३. नोटमूल प्रति का पाठ 'परिबंधि' (२३२) १. पुनि जग माहि एहउ होइ (क) पुन वा जु जगत महि होइ (6) . २. प्रजरामर () ३. पर ठगरा (क) अमर विमारण (ख) ४. निरवाणि (क)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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