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जैन विद्वानों की लोक भापायें लिखने में को प्रारम्भ से ही अपनाया और उसमें का प्रयास किया ।
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रुचि होने के कारण उन्होंने हिन्दी अधिक से अधिक साहित्य लिखने
प्रद्यम्न चरित का समकालीन हिन्दी साहित्य.
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अब हमें प्रद्युम्न चरित के समकालीन साहित्य पर ( सं १४०० से लेकर १४२४ तक लिखे गये ) विचार करना है और देखना है कि इस समय लिखे गये हिन्दी साहित्य और प्रद्युम्न चरित में कितनी समानता है ।
हिन्दी साहित्य के इतिहास में १५ वीं शताब्दी के प्रथम पाद की रचनाओं का उल्लेख नहीं के बराबर हुआ है। उसमें महाराष्ट्र के साधु नामदेव की स्कूट रचनाओं का उल्लेख अवश्य किया गया है। इसके अतिरिक्त 'राजस्थानी भाषा और साहित्य' में १५ वीं शताब्दी के प्रथम पाद के जिन कवियों का नामोल्लेख हुआ है उसमें केवल एक कवि शार्ङ्गघर आते हैं। किन्तु उनकी जिन दो रचनाओं के नाम हम्मीर रासो तथा हम्मीर काव्यगिनाये गये हैं वे भी मूल रूप में उपलब्ध नहीं होती हैं। हां, उनकी इन रचनाओं के कुछ पद्म इधर उधर जाकर मिलते हैं। शार्ङ्गधर के जो पद्य मिले हैं उन पर अपभ्रंश का पूर्ण प्रभाव है। एक पद्य देखिये
पिंउ दिढ सरगाह वाह उप्पर पक्खर दई । बंधु समदि ररंग धसउ हम्मीर वरण लइ ॥ उड्डल शाह पह भमउ लग्गा रिउ सोस हि बारउ । पक्खर पक्खर ठेल्लि पेल्लि पव्बत्र ग्रप्फाल || हम्मीर कज्जु जज्जल भरगह कोहासाल मुहमह् जलउ । सुलतारण सीस करवाल दइ तंज्जि कलेवर दिन चलउ ।
श्री मनारियाजी ने जिन जैन कवियों के नाम गिनाये हैं उनमें राजशेखरसूरि (१४०५), जयानंदसूरि (१४१०), तरुणमत्र सूरि (१४११), विनयप्रभ (सं० १४१२), जिनोदय सूरि (१४१५), सधारु कवि के समकालीन आते हैं । किन्तु एक तो इन कवियों की स्कुट रचनाओं के अतिरिक्त कोई बड़ी रचना नहीं मिलती दूसरे जो कुछ इन्होंने लिखा है वह प्राचीन हिन्दी ( अपभ्रंश) से पूर्णतः प्रभावित है । विनयप्रभ कृत गौतमरासा का एक पद्य देखिये—
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