________________
है । इसमें अनेक रसों का संमिश्रण बड़े अाकर्षक ढङ्ग से हुआ है । पद्मकीर्ति ने अपने पासणाचरिउ' को सम्बत् ६६E में समाप्त किया। भाषा साहित्य की दृष्टि से यह कान्य भी उल्लेखनीय है।
११ वीं शताब्दी में होने वाले कवियों में धीर, नयनन्दि, कनकामर . आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। महाकवि वीर का यद्यपि एक ही काव्य 'जम्बूसामीचरित्र उपलब्ध होता है। किन्तु उनकी यह एक ही रचना उनके पाण्डित्य एवं प्रतिभा को प्रकट करने के लिये पर्याप्त है। 'जम्बूसामीचरित्र' वीर एवं शृङ्गार रस का अनोखा काव्य है। नयनन्दि ने अपने काव्य 'सुदंसण चरिउ' को सम्बत् ११०० में समाप्त किया था। ये अपभ्रंश के प्रकांड विद्वान थे । इसीलिये इन्होंने सुदंसणचरिउ' में महाकाव्यों की परम्परा के अनुसार पुरुष, स्त्री एवं प्राकृतिक दृश्यों का वर्णन किया है। बाण एवं सुबन्धु ने जिस क्लिष्ट एव अलंकृत पदावली का संस्कृत गद्य में प्रयोग किया था नयनन्दि ने भी उसी तरह का प्रयोग अपने इस पद्य काव्य में किया है । विविध छन्दों का प्रयोग करने में भी यह कवि प्रवीण थे । इन्होंने अपने कान्य में ५५ प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है। सकलरिधिनिधान काव्य में अपने से पूर्व होने वाले ४० से अधिक कवियों के नाम इन्होंने गिनाये है, जिनमें सस्कृत अपनश दोनों ही भाषाओं के कवि हैं। कनकामर द्वारा निबद्ध 'करकण्डु चरिउ' भी काव्यत्व की दृष्टि से उत्कृष्ट काव्य है। इसका भाषा उदात्त भावों से परिपूर्ण एवं प्रभाव गुणयुक्त है। इसी शताब्दी में होने वाले धाहिल का 'पउमसिरिचरि' एवं अब्दुल रहमान का 'सन्देशरासक' भी उल्लेखनीय काव्य है।
१२ वीं शताब्दी में होने वाले मुख्य कवियों में श्रीधर, यशःकीर्ति, हेमचन्द, हरिभद्र, सोमप्रभ, विनयचन्द आदि के नाम गिनाये जा सकते हैं। हेमचन्द्राचार्य अपने समय के सर्वाधिक प्रतिभा सम्पन्न विद्वान थे । संस्कृत एवं प्राकृत भाषा के साथ साथ अपभ्रंश भाषा के छन्दों को भी उन्होंने अपने 'छन्दानुशासन' में उद्धृत किया गया है।
१३ वीं और १४ वीं शताब्दी में अपभ्रंश साहित्य के साथ साथ हिन्दी साहित्य का भी निर्माण होने लगा। इसी शताब्दी में पं० लाखू ने 'जिरणयत्त चरिउ' जयभित्रहल ने 'बडुमाणकन्त्र' कवि सिंह ने 'पज्जुइण चरित' श्रादि काव्य लिखे । १४ वीं शताब्दी में धर्मसूरि का 'जम्बूस्वामीरास', रल्ह का जिणदत्त चाई' (मंत्रत १३५४) घेल्ह का 'चउत्रीसी गीत' (संवत् १३७१) भी उल्लेखनीय रचनायें हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हिन्दी की रचना