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के लिये प्रथा अक्षरों के क्रम अधिक प्रयोग के लिये पहिले ही परिडत वर्ग से वह क्षमा याचना करता है । रचना काल :--
अब तक प्रद्युम्न चरित्र की जितनी प्रतियां उपलब्ध हुई हैं उन सभी प्रतियों में एकसा रचना काल नहीं मिलता है। इन प्रतियों में रचना काल के तीन मम्बत् १३११, १४११ एवं १५११ मिलते हैं । यहां हमें यह देखना है कि इन नीनों सम्बो में कौनसा सही मम्बन है। विभिन्न प्रतियों में निम्न प्रकार से रचना काल का उल्लेख मिलता है:
(१) अग्रवाल पंचायती मन्दिर कामां, जैन मन्दिर रीवां एवं मात्मानन्द जैन सभा म्याला की प्रतियों में सम्बत् १३११ लिखा हुआ है।
(२) बधीचन्दजी का जैन मन्दिर जयपुर, खण्डेलवाल पंचायती मन्दिर कामी, जैन मन्दिर देहली और बाराबंकी वाली प्रतियों में रचना सम्बत् १४११ दिया हुआ है।
(३) सिंधिया औरिएंटल इन्स्टीट्यूट उज्जैन वाली प्रति में सम्बन १५११ दिया हुआ है ।
सम्बत् १३११ वाले रचना काल के सम्बन्ध में जो पाठ है, वह निम्न प्रकार है:
संवत् तेरहस हुइ गये ऊपर अधिक इग्यारा भये । भादी सुदि पंचमी दिन सार, स्वाति नक्षत्र जनि सनिवार ।
भक्त पद्य के अनुसार प्रद्युम्न चरित्र सम्बत् १३११ भादवा मुवी ५ शनिवार स्वाति नक्षत्र के दिन पूर्ण हुआ था।
सम्बत् १४११ पाला रचना काल जो ४ प्रतियों में उपलब्ध होता है, निम्न प्रकार है :सरसकथा रसु उपजइ घराउ, निसुबहु चरितु पजूसह ताउ | संवत् चौदहस हुई गए, ऊपर अधिक इग्यारह भए । भावव दिन पंचइ सो सारु, स्वाति नक्षत्र सनोश्चर वारु ॥१२॥
जयपुर वाली प्रात