Book Title: Paumchariyam Part 02
Author(s): Parshvaratnavijay
Publisher: Omkarsuri Aradhana Bhavan

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Page 71
________________ सुकोसलमुणिमाहप्प-दसरहउप्पत्तिवण्णणं - २२ / ८८-११० दशरथ: तस्स महादेवी, पुहईए दो सुया समुप्पन्ना । पढमो य अणन्तरहो, बीओ पुण दसरहो जाओ ॥ १०१ ॥ माहेसरनयरवई, मित्तं सोऊण सहसकिरणं सो । पव्वइओ निव्विण्णो, इमस्स संसारवासस्स ॥१०२॥ अणरण्णो वि नरवई, पुत्तं चिय दसरहं ठविय रज्जे । निक्खमइ सुयसमग्गो पासे मुणिअभयसेणस्स ॥१०३॥ हट्ठऽट्ठम-दुवालसेहि मासऽध्धमासखमणेहिं । काऊण तवमुचारं, अणरण्णो पत्थिओ मोक्खं ॥ १०४॥ साहू वि अणन्तरहो, अणन्तबल - विरिय सत्तिसंपन्नो । संजम - तव - नियमधरो, जत्थत्थमिओ मही भमइ ॥ १०५ ॥ अरुहत्थले नरिन्दो, सुकोसलो तस्स चेव महिलाए । अमयप्पभाए धूया, कन्ना अवराइया नामं ॥१०६॥ सा दसरहस्स दिन्ना, परिणीया तेण वरविभूईए । अह कमलसंकुलपुरे, सुबन्धुतिलओ निवो तत्थ ॥१०७॥ मित्ता य महादेवी, दुहिया चिय केकई ललियरूवा । सा दसरहेण कन्ना, परिणीया नाम सोमित्ती ॥ १०८ ॥ एवं जुवईहि समं, परिभुञ्जइ दसरहो महारज्जं । सम्मत्तभावियमई, देव-गुरुपूयणाभिरओ ॥१०९॥ जे भरहाइनराहिवसूरा, उत्तमसत्ति - सिरीसंपन्ना । ते जिधम्मफलेण महप्पा, होन्ति पुणो विमला - मलभावा ॥११०॥ ॥ इय पउमचरिए सुलकोसलमाहप्पजुत्तो दसरहउप्पत्तिभिहाणो नाम बावीसइमो उद्देसओ समत्तो ॥ दशरथ: तस्य महादेव्याः पृथिव्यां द्वौ सुतौ समुत्पन्नौ । प्रथमश्चानन्तरथो द्वितीयः पुनर्दशरथोजातः ॥१०१॥ माहेश्वरनगरपतिं मित्रं श्रुत्वा सहस्रकिरणं सः । प्रव्रजितो निर्विण्ण एतस्मात् संसारवासात् ॥१०२॥ अनरण्योऽपि नरपतिः पुत्रमेव दशरथं स्थापयित्वा राज्ये । निष्क्रामति सुतसमग्रः पार्श्वे मुन्यभयसेनस्य ॥१०३॥ षष्टाष्टमदशमद्वादशैः र्मासार्द्धमासक्षपणैः । कृत्वा तप उदारमनरण्यः प्रस्थितो मोक्षम् ॥१०४॥ साध्वप्यनन्तरथोऽनन्तबल-वीर्यशक्तिसंपन्नः । संयमतपोनियमधरो यथास्तमितो महीं भ्रमति ॥१०५॥ अरुहस्थले नरेन्द्रः सुकोशलस्तस्यैव महिलायाः । अमृतप्रभाया दुहिता कन्याऽपराजिता नाम ॥१०६॥ सा दशरथाय दत्ता परिणीता तेन वरविभूत्या । अथ कमलसंकुलपुरे सुबन्धुतिलको नृपस्तत्र ॥१०७॥ मित्रा च महादेवी दुहितैव कैकयी ललितरुपा । सा दशरथेन कन्या परिणीता नाम सौमित्री ॥१०८॥ एवं युवतिभ्यां समं परिभुनक्ति दशरथो महाराज्यम् । सम्यक्त्वभावितमति देवगुरुपूजनाभिरतः ॥१०९॥ 1 ये भरतादिनराधिपशूरा उत्तमशक्ति - श्रीसंपन्नाः । ते जिनधर्मफलेन महात्मानो भवन्ति पुन विमलाऽमलभावाः ॥ ११०॥ ॥ इति पद्मचरित्रे सुकोशलमहात्मययुक्तो दशरथोत्पत्यभिधानो नाम द्वाविंशतितम उद्देशः समाप्तः ॥ १. नियमरओ- प्रत्य० । Jain Education International २४३ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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