Book Title: Patanjali Yoga Sutra Part 05
Author(s): Osho
Publisher: Unknown

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Page 14
________________ बोलेंगे? और वे तो करुणा के अवतार हैं और वे साक्षात प्रेम हैं। वे क्यों कहते हैं, 'यदि तुम. मेरा अनुगमन करना चाहते हो, तो अपनी माता से घृणा करो, अपने पिता से घृणा करो। इसका अभिप्राय है : काम- प्रसंग से बाहर निकलो। वे जो कह रहे हैं उसका प्रतीकात्मक अर्थ है : काम-केंद्र के पार जाओ। तब तत्क्षण तुम अतीत से और संबंधित नहीं रहते, भविष्य से और संबंधित नहीं रहते। यह काम है जो तुम्हें समय का हिस्सा बनाता है। एक बार तुम काम से पार चले जाओ, तुम शाश्वत का एक भाग बन जाते हो, समय का भाग नहीं रहते। तब अचानक केवल वर्तमान का ही अस्तित्व बचता है। तुम वर्तमान हो, लेकिन अगर तुम खुद को काम–केंद्र द्वारा देखते हो तो तुम अतीत भी हो, क्योंकि तुम्हारी आंखों में तुम्हारी माता और तुम्हारे पिता का रंग होता है, और तुम्हारे शरीर में लाखों पीढ़ियों के परमाणु और कोशिकाएं विद्यमान होंगी। तुम्हारी सारी रचना, जैव संरचना एक लंबे सातत्य का हिस्सा है। तुम एक बड़ी श्रृंखला की कडी हो। भारत में यह कहा जाता है कि जब तक तुम एक संतान को जन्म न दो तुम अपने माता-पिता का कर्ज नहीं चुका सकते। यदि तुम चाहते हो कि अतीत का ऋण 'तुम से हट जाए, तो तुम्हें भविष्य निर्मित करना पड़ेगा। यदि तुम वास्तव में ऋण-मुक्त होना चाहते हो, तो अन्य कोई उपाय नहीं है। तुम्हारी मां तुम्हें प्रेम करती थी, तुम्हारे पिता तुम्हें प्रेम करते थे, अब तुम क्या कर सकते हो? वे विदा हो चुके। तुम मां बन सकती हो बच्चों की, तुम उनके पिता बन सकते हो और प्रकृति का ऋण उसी कोष में जमा कर सकते हो जहां से तुम्हारे मां-बाप आए, तुम आए, तुम्हारे बच्चे आएंगे। काम एक महत श्रृंखला है। यह विश्व की, संसार की सारी श्रृंखला है, और यह दूसरों से जुड़ाव है। क्या तुमने इस पर ध्यान दिया है? जिस पल तुम कामुक अनुभव करते हो, तुम दूसरे के बारे में सोचने लगते हो। जब तुम कामुक अनुभव नहीं करते, तुम कभी भी दूसरे के बारे में नहीं सोचते। जो व्यक्ति काम से परे है, वह दूसरे से भी परे है। वह समाज में रह सकता है, पर वह समाज में नहीं होता। वह भीड़ में चल रहा होता है, पर वह अकेला चलता है। और ऐसा व्यक्ति जो कामक है, वह अकेला एवरेस्ट के शिखर पर बैठा हआ हो सकता है, लेकिन वह दूसरे के बारे में सोचेगा। उसे ध्यान करने के लिए चंद्रमा पर भेजा जा सकता है परंतु वह दूसरे के बारे में ही ध्यान करेगा। काम दूसरों से जुड़ने का सेतु है। जैसे ही काम तिरोहित होता है श्रृंखला भंग हो जाती है। पहली बार तुम एक व्यक्ति बन जाते हो। यही कारण है कि लोग भले ही काम से अत्यधिक ग्रस्त हैं, लेकिन वे इसके साथ कभी प्रसन्न नहीं होते, क्योंकि इसके दोनों तरफ धार है। यह तुम्हें दूसरों से जोड़ता है, यह तुम्हें वैयक्तिक नहीं होने देता। यह तुम्हें तुम नहीं होने देता है। यह तुम्हें ढांचों में, गुलामियों में, बंधनों में रहने को बाध्य करता है। लेकिन अगर तुम नहीं जानते कि इसका अतिक्रमण कैसे हो, तो तुम्हारी ऊर्जा को प्रयोग करने का यही एक मात्र रास्ता है। यह एक सुरक्षा वाल्व बन जाता है।

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