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भूमिका
जो जीता है, उसे 'जीव' कहते हैं, 'जन्तु' भी कहते हैं। सांस लेने का प्राण जिसमें है, उसे 'प्राणी' कहते हैं। जो शरीर धारण करता है, देह में रहता है, उसे 'देही' कहते हैं और जिसे मरना है, जो मरण को टाल नहीं सकता, उसे 'मर्त्य' कहते हैं। कितने सच्चे और अच्छे शब्द हैं ये ! ____ सब प्राणियों के लिए ये शब्द लागू हैं। मनुष्य भी प्राणी है, इसलिए ये शब्द उसको भी लागू हैं । लेकिन मनुष्य में एक विशेष शक्ति है सोचने की, विचार करने की, मनन करने की। इसलिए उसे मनुष्य भी कहते हैं। मनुष्य की यह विशेषता है। (मननात् मनुष्यः)। वेदों में मनन करने वाले मनुष्य को 'मन्तु' कहा है । जन्तु-मन्तु की जोड़ी अच्छी जमती है । कैसे जीना, इसपर मनन करके मनुष्य ने जीवन के अनेक शास्त्र रचे और अपने लिए जीवनयोग तैयार किया । सांस लेना है तो सांस कैसे लें, उससे लाभ कैसे उठावें, इसका भी उसने शास्त्र बनाया, जिसे प्राणायाम कहते हैं । हठयोग, राजयोग, ध्यानयोग आदि में प्राणायाम का महत्व बताया है । मनुष्य खा-पीकर जीता है, इसलिए आबोहवा कैसी हो, कौन-सा आहार अच्छा है, कब खाना, कैसे खाना, कितना खाना, इसका भी एक बड़ा शास्त्र मनुष्य ने रचा है । देह धारण करना है तो उसके बारे में भी तरह-तरह के शास्त्र उसने बनाये हैं। मनुष्य ने मनन करके, प्रत्यक्ष प्रयोग करके और प्राप्त अनुभव का चिन्तन करके ज्ञान के कितने ही क्षेत्र बढ़ाये हैं और जीवन की सफलता पाई है। ___ जीने के साथ मरण तो आता ही है । जिस तरह वाक्य के अन्त में पूर्ण विराम, दिन की प्रवृत्ति के अंत में नींद, नाटक समाप्त होते ही पर्दा, यात्रा खत्म होते ही भगवान के दर्शन, उसी तरह जीवन के अन्त में