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रहे हुए हों, उन्हें परमेष्ठी कहते हैं । अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय तथा साधु गृहस्थोंकी अपेक्षा उच्च स्थानमें रहे हुए हैं, अत एव इन्हें परमेष्ठी कहते हैं ।
प्रश्न- - पञ्च परमेष्ठी में देव कितने और गुरु कितने ?
उत्तर – पञ्च- परमेष्ठी में अरिहन्त और सिद्ध ये दोनों देव हैं तथा आचार्य, उपाध्याय एवं साधु ये तीन गुरु हैं ।
प्रश्न - अरिहन्तका अर्थ क्या है ?
उत्तर - राजा-महाराजा तथा देवादिकोंके
प्रश्न - अरिहन्तका दूसरा अर्थ क्या है ?
उत्तर - अरि अर्थात् शत्रु और हन्त अर्थात् हनन करनेवाला । जिस परम - पुरुषने कर्मरूपी शत्रुका हनन किया है, वह अरिहन्त ।
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पूज्य
प्रश्न - अरिहन्त भगवान् कैसे पहचाने जाते हैं ?
उत्तर-- अरिहन्त भगवान् बारह गुणोंसे पहचाने जाते हैं । प्रश्न- - वे किस प्रकार ?
वीतराग महापुरुष ।
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उत्तर - (१) जहाँ अरिहन्त भगवान्का समवसरण होता है, वहाँ देवगण उनके शरीर से बारह गुना ऊँचा अशोकवृक्ष रचते हैं, (२) पुष्पोंकी वृष्टि करते हैं, (३) दिव्य-ध्वनिसे उनकी देशना - में स्वर भरते हैं, (४) चंवर डुलाते हैं, (५) बैठनेके लिये रत्न - जटित स्वर्णका सिंहासन बनाते हैं, (६) मस्तकके पीछे तेजका संवरण करनेवाला भामण्डल रचते हैं ( नहीं तो अतितेजके कारण भगवान्का मुख दर्शन नहीं हो सके ) (७) दुन्दुभि बजाते हैं और (८) मस्तकके ऊपर तीन मनोहर छत्र रचते हैं । इन आठ गुणोंको अष्ट-प्रतिहार्य कहते हैं, क्यों कि ये प्रतिहारी ( राजसेवक ) के समान
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