Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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उपदेश मालायां
॥२१८॥
भवः,
न निविण्णो सुक्खेहिं न चेव परितुट्ठो ॥ १९५ ॥ परितप्पिएण तणुओ, साहारो जइ घणं न उज्जमइ । सेणियराया तं तह, परि-10
विपाकः,
आत्मदमः, तप्पंतो गओ नरयं ॥१९६ ॥ जीवेण जाणि विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि । थोवेहिं तओ सयलंपि तिहुयण हुज्ज पडि-18
प्रमादा, हत्थं ॥१९७ ॥ नहदंतमंसकेसट्ठिएसु जीवेण विप्पमुक्केपु । तेसुवि हविज्ज कइलासमेरुगिीरसीनमा कूडा ॥ १९८ ।। हिमवंतमलयमंदरदीवोदहिधरणिसरिसरासीओ । अहिअयरो आहारो, छुहिएणाहारिओ होज्जा ॥१९९ ॥ जंण जलं पीयं, धम्मायवजगडिएण तंपि इहं । सव्वेसुवि अगडतलायनइसमुद्देसु नवि हुज्जा ॥२०० ॥ पीयं थणयच्छीरं, सागरसलिलाओ होज्ज बहुअयरं । संसारम्मि अणते, माऊणं अन्नमन्नाणं ।। २०१ ॥ पत्ता य कामभोगा, कालमणंतं इह सउवभोगा । अप्पुबंपि व मन्नई, | तहवि य जीवो मणे सुक्खं । २०२ ॥ जाणइ अ जहा भोगिड्डिसंपया सब्वमेव धम्मफलं । तहवि दढमूढहियओ, पावे कम्मे जणा रमई ॥२०३ ।। जाणिज्जइ चिंतिज्जइ, जम्मजरामरणसंभवं दुक्खं । न य विसएसु विरज्जई, अहो सुबद्धो कवडगंठी ।। २०४ ॥ जाणइ य जह मरिज्जइ, अमरंतंपि हु जरा विणासेई । न य उद्विग्गो लोओ, अहो रहस्सं सुनिम्मायं ।। २०५ ॥ दुपयं चउप्पयं बहुपयं च अपयं समिद्धमहणं वा । अणवकएवि कयंतो, हरइ हयासो अपरितंतो ॥२०६ ।। न य नज्जइ सो दियहो, मरियव्यं |चावसेण सव्वण | आसापासपरदो, न करेह य जं हियं बोज्झो(बोहो)॥२०७|| संझरागजलबुब्बुओवमे, जीविए अ जलबिंदुचंचले।। जुव्वणे य नहवेगसनिमे, पाव जीव ! किमयं न बुज्झसि ॥ २०८ ॥ जज नज्जड असई, लज्जिज्जह कुच्छणिज्जमयति । तं तं |
॥२१८॥ मग्गइ अंगं, नवरमणंगुत्थ पडिकूलो ॥२०९ ॥ सब्बगहाणं पभवो, महागहो सधदोसपायट्टी । कामग्गहो दुरप्पा, जेणभिभूयं तू |जगं सव्वं ।। २१० ।। जो सेवइ किं लहइ, थाम हारेइ दुब्बलो होइ । पावेइ वेमणसं, दुक्खाणि अ अत्तदोसणं ॥२११ ।। जह
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