Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 321
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie श्रीचन्द्र- % % पञ्चसंग्रहे कमप्रकृती ॥३१७॥ % % चरिमाणं । मोहस्स चउविगप्पो आउस्सऽणुकोसओ चउहा ॥ ५६८ ॥ साइयवज्जो वेयणियनामगोयाण होइ अणुकोसो। सव्वेसु। प्रदेश संक्रमः | सेसभेया साई अधुवा य अणुभागे ।। ५६९ ॥ अजहन्नो चउभेओ पढमगसंजलणनांकसायाणं । साइयवज्जो सोच्चिय जाण खवगो | | खवियमोहो ॥ ५७० ॥ सुभधुवचउवीसाए होइ अणुकोस साइपरिवज्जो । उज्जोयरिसभओरालियाण चउहा दुहा सेसा ॥ ५७१ ॥ | इति रससंक्रमः | विज्झाउव्वलणअहापवत्तगुणसव्वसंकमेहि अणू । जन्नेह अण्णपगई पएससंकामणं एयं ॥ ५७२ ॥ जाण न बन्धो जायइ आसज्ज गुणं भवं च पगण । विज्झाओ ताणंगुलअसंखभागेण अन्नत्थ ॥ ५७३ ।। पलियस्सऽसंखभाग अंतमुहुत्तेण ठिइइ उव्वलइ । एवं पलियासंखियभागेणं कुणइ निल्लवं ।। ५७४ ॥ पढमाओ बीयखंड विसेसहीण ठिईए अवणेइ । एवं जाव दुचरिमं असंखगुणियं तु | अंतिमयं ॥ ५७५ ।। खंडदलं सट्ठाणे समए समए असंखगुणणाए। सेढीए परठाणे विसेसहीणाए संछुभइ ।। ५७६ ॥ दुचरिम| खडस्स दलं चरिमे जं देइ सपरठाणम्मि । तम्माणेणऽस्स दलं पल्लंगलऽसंखभागेहिं ।। ५७७ ॥ एवं उब्बलणासंकमेण णासइ अवि-18 रओ हारं । सम्मोऽणमिच्छमीसे छत्तीस नियट्टि जा माया ॥ ५७८ ॥ सम्ममीसाई मिच्छो सुरदुगवेउबिछक्कमेगिदी। सुहुमतसुच्चमणुदुर्ग अंतमुहुत्तेण अनिअट्टी ॥ ५७९ ॥ संसारत्था जीवा सबन्धजोगाण तद्दलपमाणा । संकामंतऽणुरूवं अहापवत्तीए तो नाम ॥ ५८० ॥ असुभाण पएसग्गं बझंतीसु असंखगुणणाए । सेढीए अपुयाई छुभन्ति गुणसंकमो एसो ॥ ५८१ ।। चरमठिईए| रइयं पइसमयमसंखियं पएसग्गं । ता छुभइ अन्नपगई जावते सब्बसंकामो ॥ ५८२ ।। बाहिय अहापवत्तं सहेउणाहो गुणो वा विज्झाओ । उव्वलणसंकमस्सवि कसिणो चरमम्मि खंडम्मि ।। ५८३ ॥ पिंडपगईण जा उदयसंगया तीए अणुदयगयाओ । संका % % For Private and Personal Use Only

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