Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 326
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- पिंकृते पञ्चसंग्रहे। प्रकृत्युदीरणा कमग्रकृता ॥३२२॥ निलो उ पज्जत्तो । लद्धीए बायरोदीरगो उ बउब्बियतणुस्स ॥ ६५१॥ तदुवंगस्सावि तेच्चिय पवणं मोत्तूग केइ नरतिरिया । आहारसत्तगस्सवि कुणइ पमत्तो विउर्वतो ।। ६५२ ॥ तेत्तीस नामधुवोदयाण उद्दीरगा सजोगाओ । लोभस्स य तणुकिट्टीण होंति | तणुरागिणो जीवा ।। ६५३ ॥ पंचेदियपज्जत्ता नरतिरि चउरंस उसभपुवाणं । चउरंसमेव देवा उत्तरतणुभोगभूमा य ॥ ६५४ ॥ आइमसंघयणं चिय सढीमारूढगा उदीरेंति । इयरे हुंडं छेवढगं तु विगला अपज्जत्ता ।। ६५५ ।। वेउब्धियाहारगउदये न नरा| वि होंति संघयणी । पज्जत्त बायरोच्चिय आयाबुद्दीरगो भोमो ।। ६५६ ।। पुढवी आउवणस्सइ बायरपज्जत्तउत्तरतणू य । विग लपणिदियतिरिआ उज्जोवुद्दीरगा भणिया ।। ६५७ ।। सगला सुगतिसराण पज्जत्ताऽसंखवासदेवा य । इयरार्ण गरइया नरतिार। | सुसरस्स विगला य ।। ६५८ ॥ उस्सासस्स सरस्स य पज्जत्ता आणपाणभासासु । जान निरंभइ ते ताव होंति उद्दीरगा जोगी ।। ६५९ । नेरइआ सुहुमतसा वज्जिय सुहमा य तह अपज्जत्ता । जसकीत्तुदीरगाएज्जसुभगनामाण सण्णिसुरा ।। ६६० ।। उच्च चिय जइ अमरा केई अणुआ व नीयमेवण्णे । चउगइआ दुभगाई तित्थयरी केवली तित्थं ।। ६६१ ।। मोत्तूण खीणरागं इंदियपज्जत्तगा उदीरेंति । निद्दा पयला सायासायाई जे पमत्तत्ति ॥ ६६२ ।। अपमत्ताई उत्तरतणू य अस्संखया उ वज्जित्ता । सेसनिदाण सामी सबंधगंता कसायाणं ।। ६६३ ॥ हासरईसायाण अन्तमुहुत्तं तु आइम देवा। इयराणं नेरइया उर्दु परियत्तणविहीए ॥ ६६४ ।। हासाइछक्कस्स उ जाव अपुब्यो उदीरगा सब्वे । उदउबुदीरणाए ओघणं होइ नायब्वो ॥ ६६५ ॥ पगईठाणविगप्पा जे सामी होति उदयमासज्ज । तेच्चिय उदोरणाए नायब्धा घातिकम्माणं ।। ६६६ ॥ मोत्तुं अजोगिठाण सेसा नामस्स उदयवनेया । गोयस्स य सेसाण उदीरणा जा पमत्तोत्ति ।। ६६७॥ इति प्रकृत्युदीरणा ।। ॥३२२॥ For Private and Personal Use Only

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