Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 347
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र पिकृते | पञ्चसंग्रह कमेप्रकृतो ॥३४३॥ CACAKACCX दुगुणतिगुणदुगुणा गुणतीसाईसु उदएसु ॥ ८॥ नव-नव सीया दोसय छावत्तर पंचपंच उदयदुगे । एकारस्स य बावन नराण परिशिष्टं उदएसु मंगसया ॥९॥ अड अड नव नव एके वेउब्बिनराण होइ पणतीसा । एकेकदोदुगेक्के आहारजईण सत्तेव ।। १०॥ अटुट्ठ| अधिकाश्च अट्ठ सोलस सोलट्ठ य देवओ य भंगाओ । नारयफेवलिउदएसु पंचवावट्ठिभंगाओ॥११॥ लिखित आदर्श अधिका एता गाथा:-गइ इन्दिए य काए जोए वेए कसाय नाणे य। संजम दंसण लेसा भवसम्मे सन्नि आहारे ॥१॥(८ गाथातः पश्चात्) संतपयपरूबणया दव्वपमाणं च खेत्त फुसणा य । कालो य अंतरं भाग भावे अप्पाबहुं चेव ॥१॥ | (३८ गाथातः) छत्तिन्नि तिनि सुणं पंचेव य नव य तिनि चत्तारि । पंचव तिथि नव पंच सत्त तिन्नेव २ ॥१॥ चउ छ दो चउ8 एक्को पाण दो छक्केकगो य अद्वेव दो दो नव सत्तेव य अंकट्ठाणाई गुणतीसं ॥२॥ (५५ गाथातः ) उदए च्चिय अविरुद्धो | खाओक्समो अणेगमेओत्ति । जइ भवइ तिण्ड एसो पएसउदयमि मोहस्स ॥१॥ (१४५ गाथातः) बग्गुक्कोसठिईण मिच्छत्तुक्को| सगेण जं लद्धं । सेसाणं तु जहन्नो पल्लासंखिज्जागेणूणे ॥१॥ ( २५५ गाथातः) ४ ॥३४३।। For Private and Personal Use Only

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