Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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ऋतुरिमाणं १४
श्रीज्योति- असगा य बोद्धव्या।दो चेव एकवीसा छओ पुण तास बोद्धव्यो ।। २५८ ।। एएण उ भइयव्यो मंडलरासी हविज्ज जं लद्धं । सा करंडके
सोममुहुत्तगई तहिं तहि मंडले नियया ।।२५९॥ नक्खत्तसूरससिणो भणिया एसा उमंडलंमि गई। इइनक्वत्तसुरशशिगतिः१३।। 1. एत्तो उउपरिमाणं वोच्छामि अहाणुपुच्चीए ॥ २६० ।। वे आइच्चा मासा एकट्ठी ते भवंतहोरत्ता । एयं उउपरिमाणं अव-12 ४ गयमाणा जिणा बिंति ॥ २६१ ।। सूरउउस्साणयणे पव्वं पारससंगुणं निपमा । तिहिसंखित्तं संतं बावट्ठीभागपरिहीणं ।। २६२ ।।
दुगुणेगट्टीए जुयं बावीससएण भाइए नियमा । जे लद्धं तस्स पुणो छहि हिय सेसं उऊ होइ ।। २६३ ।। सेसाणं अंसाणं बेहि उ | भागेहिं तेसि जं लद्धं । ते दिवसा नायव्वा होंति पवत्तस्स अयणस्स ।। २६४ ॥ पाउस वासारत्तो सरओ हेमंत वसंत गिम्हा य ।।
एए खलु छप्पि उऊ जिणवरदिट्ठामए सिट्ठा ।। २६५ ॥ इच्छाउऊविगुणिओरूवूणावगुणिओ उ पव्वाणि । तस्सद्धं होइ तिही जत्था । समत्ता उऊ जिणवरादिट्ठा मए सिट्ठा।।२६५॥ इच्छाउऊबिगुणिओ रुवोणविगुणिओ उपव्वाणि । तस्सद्ध होइ तिही जत्थ समत्ता उऊ में छातीसं ॥ २६६ ॥ तइयंमि उ कायध्वं अतिरत्तं सत्तमे उ पव्वमि । वासहिमगिम्हकाले चाउम्मासे बिहीयते ॥ २६७ ।। उउसहिया
अतिरत्तं जुगसहियं होइ ओमरत्तं तु । रविसहियं अइरतं ससिसहियं ओमरत्तं तु ।। २६८ ॥ एकंतरिया मासा तिही य जासु ता 18 उऊ समप्पंति । आसाढाई मासा भद्दवयाई तिही सव्वा ॥ २६९ ।। तिनि सया पंचहिगा अंसा छेओ सयं च चोत्तीसं । एगाइ18 बिउत्तरगुणो धुवरासी एस बोद्धब्बो ।। २७० ॥ सत्तट्टि अद्धखेत्ते दुगतिगगुणिया समे दिवढखित्ते । अट्ठासीई पुस्से सोज्झा
अभिइम्मि बायाला ॥ २७१ ।। एयाणि सोहइत्ता 5 सेसं तं तु होइ नक्खत्त । रविसोमाण नियमा तीसाए उऊसमत्तीसु॥२७२॥ - चत्तारि उउसयाई बिउत्तराई जुगंमि चंदस्स । तेसिपि य करणविहिं वोच्छामि अहाणुपुब्धीए ॥ २७३ ।। चन्दस्सुउपरिमाणं चत्तारि
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