Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 346
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र-१ र्षिकृते पञ्चसंग्रहे कमेप्रकृती परिशिष्टं अधिकाश्च IWASIF%-5 ॥३४२॥ KAKCACAREERCRACK तिग अपुमथीवेयं ॥ ९८५ ॥ संघयणा संठाणा पणपण अपसत्थविहगइ न तेसिं । पज्जत्ता बन्धंति उ देवाउमसंखवासाऊ ॥९८६॥ तित्थायवउज्जोवं नारयतिरिविगलतिगतिगेगिदी । आहारथावरचऊ आऊण असंखऽपज्जत्ता ॥ ९८७ ॥ पज्जत्तिगया दुभगतिगणीयअपसत्थविहनपुंसाणं । संघयणउरलमणुदुगपणसंठाणाण अब्बंधी ।। ९८८ ॥ किण्हाइतिगे अस्संजमे य वेउबिजुगे न आहारं । बन्धइ न उरलमीसे नरयतिग छट्ठममराउं ॥ ९८९ ।। कम्मगजोगे अणहारगे य सहिया दुगाउ णेयाओ । सगवण्णा तेवट्ठी बन्धइ आहार उभयेसु ॥ ९९० ॥ तेऊलेसाईया बंधति न नरयविगलसुहुमतिगं । सेगिंदिथावरायव तिरियतिगुज्जोय नव बार ॥ ९९१ ॥ सुयदेविपसायाओ पगरणमेयं समासओ भणियं । समयाओ चंदरिसिणा समहीवभवाणुसारेणं ॥ ९९२ ।। ॥ इति पंचसंग्रहः समाप्तः॥ अथ परिशिष्टम्- चत्तारि वीस सोलस भंगा एगिदियाण चत्ताला । एगट्ठ अट्ठ विगलिंदियाण इगवण्ण तिण्डंपि ॥१॥ गुणतीसे तसिवि य भंगाणवाहिया छयालसया । पंचिदियतिरिजोगे पणुवीसे बन्धभंगकं ॥ २॥ पणवीसयम्मि एको छायालसया अडुत्तरिगुणतांसे । मणुजोगट्ठ उ सव्वे छायालसया य सत्तरसा ॥३॥ अहट्ट एक एक्कग भंगा अट्ठार देवजोगेसु । एको नारयजोगे एको उ सकित्तिभंगाओ ॥ ४॥ तेरस सहस्सनवसय पणयालं भंगयाण बन्धम्मि । नामस्स उदयसंखा पणयालद्वत्तरिसयाओ ॥५॥ एगिदिय उदएसं पंच य एक्कार सत्ततेरसयं । छकं कमसो भंगा बायाला हुं सब्वेवि ॥६॥ तिगतिगद्गचउछच्चउ विगलाण छसहि होइ तिण्हंपि । अहट्ट सोल सोलस अट्ठ वेउन्वितिरियस्स ॥७॥ नव नव सीया दोसय पंचच्छावत्तरीय पण तिरिए। ते A ॥३४२॥ For Private and Personal Use Only

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