Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 352
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री ज्योतिष्करंडके ||३४८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इगुणं लया होइ ॥ ६४ ॥ तत्तो महालयाणं चुलसीई चैत्र सय सहस्त्राणि । नलिंगं नाम भवे एसो वोच्छं समासेणं ॥ ६५ ॥ नलिण महानलिणंग हवइ महानलिणमेव नायव्वं । पउमंगं तह पउमं ततो य महापउमअंगं ।। ६६ ।। हवइ महापउमं चिय तत्तो कमलंगमेव नायव्वं । कमलं च महाकमलंगमेव परतो महाकमलं ॥ ६७ ॥ कुमुयंगं तह कुमुयं तत्तो य तहा महाकुमुयअंगं । तत्तो परतो य महाकुमुयं तुडियंग बोद्धव्वं ॥ ६८ ॥ तुडिय महातुडियंगं महातुडियं अडडंगमडड परं । परतो य महाडडअंग तत्तो य महाअडडमेव ।। ६९ ।। ऊहंगंपिय ऊई हवइ महल्लं च ऊहगं तत्तो । महऊई सीसपहेलियंग सीसपहेलिया होइ नायव्वा ॥ ७० ॥ एत्थं |सयसहस्साणि चुलसीई चेव होइ गुणकारो । एकैकमि उ ठाणे अह संखा होइ कालमि ॥ ७१ ॥ एसो पण्णवणिज्जो कालो संखेज्जओ मुणेयव्वो । वोच्छामि असंखज्जं कालं उवमा विसे सेणं ॥ ७२ ॥ सत्थेण सुतिक्खेणवि छित्तुं भित्तुं व जं किर न सका । तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥ ७३ ॥ परमाणू तसरेणू रहरेणू अग्गयं च वालस्स । लिक्खा ज्या य जवो अट्ठगुणविवडिया कमसो ॥ ७४ ॥ जबमज्झा अड्ड हवन्ति अंगुलं छच्च अंगुला पाओ। पाया य दो विहत्थी दो य विहत्थी हवइ हत्थो || ७५ || दंडं धणुं जुग नालिया य अक्ख मुसलं च चउहत्था । अट्ठेव धणुसहस्सा जोयणमेगं च माणणं ॥ ७६ ॥ एयं धणुष्पमाणं नायव्वं जोयणस्स य पमाणं । कालस्स परीमाणं एत्तो उद्धं पवक्खामि ॥ ७७ ॥ जं जोयणविच्छिष्णं तं तिगुणं परिरएण सविसेसं । तं जोयणमुव्विद्धं जाण पलिओचमं नाम ॥ ७८ ॥ एकाहियचेहियतेहियाण उक्कोससत्तरत्ताणं । सम्म सन्निचियं भरियं वालग्गकोडीणं || ७६ || ओगाहणा उ तेसिं अंगुलभागो भवे असंखञ्जा । एवं लोमपमाणं एत्तो वोच्छामि अवहारं ॥ ८० ॥ बाससए वाससए एकेके अवहियंमि जो कालो । सो कालो नायव्वो माणं एकस्स पल्लस्स ॥ ८१ ॥ एएसिं पल्लाणं कोडीकाडी हवेज्ज दसगुणिया । तं For Private and Personal Use Only कालमानं २ प्राभृतं ॥३४८ ॥

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