Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 360
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit श्रीज्योति- करंडके ॥३५६॥ AACKET नक्खत्तगहगणा चैव । तं ते पदक्षिणगई परति मेरुं गइरई य॥१९२ ॥ पन्नरस मंडलाई चंदस्स महेसिणो उवदिसंति । चुल-1 मंडल सीई मंडलसयं अणूणगं बिति सूरस्स ॥ १९३ ।। जोयणसय असीय अंतो ओगाहिऊण दीवंमि । तस्सारं तु सपरिहिं अम्भितर- 1 वमागर मंडलं रविणो ॥१९४ ॥ तीसाई तिन्नि जोयण सयाणि ओगाहिऊण लवणंमि । तस्सुवरि तु सपरिहिं बाहिरगं मंडलं रविणो ॥१९५॥ तिवेव सयसहस्सा पण्णरस य होंति जोयणसहस्सा । अउणानवइ परिरओ अधिभतरमंडले रविणो । १९६ ॥ तिनव सयसहस्सा | अट्ठारस होंति जोयणसहस्सा । तिनि सया पन्नासा बाहिरए मंडले रविणो ॥ १९७ ॥ दस चेव मंडलाई अम्भितरवाहिरा रविससीणं । सामन्त्राणि उ नियमा पत्तयं पंच चंदस्स ॥ १९८ ॥ चंदंतरेसु असु अभितरवाहिरेसु सरस्स । चारस बारस मग्गा छ । तेरस तेरस भवति ।। १९९ ।। चंदविकंपं एक सूरविकंपेण भायए नियमा। जं हवइ भागलद्धं सूरविकंपा उ ते होंति ।। २०० ।। बे जोयणाणि सूरस्स मंडलाणं त हवड अंतरिया। चंदस्सवि पणतीस साहिया होइ नायव्वा ।। २०१॥ सूरविकंपो एको समंडला का होइ मंडलंतरिया । चंदविकंपो य तहा समंडला मंडलंतरिया ॥२०२ ॥ पंचव जोयणसया दसुत्तरा जत्थ मंडला होति । जे अक्क| मेइ तिरियं चंदो सूरो य अयणेणं ।। २०३ ।। सगमंडलहिं लद्धं सगकट्ठाओ हवंति सविकम्पा । जे सगविक्खंभजुया हवंति सगमंडलंतरिया ।। २०४ ॥ इच्छामण्डलरूवूणगुणियं अभंतरं तु सूरस्स । तस्सेसं सामण्णं सामण्णावसेसियं ससिणो । २०५॥ छट्ठाइसुम रविसेस रविससिणो अंतरं त नायच्वं । तं च ससि सद्ध सरंतराहियं अंतरं बाहिं ।। २०६ ॥ जत्थ न सुज्झइ सोमो तं ससिणो " तत्थ होइ पत्तेयं । तस्ससं सामने सामनविससियं रविणो । २०७ ।। अट्ठवेगारस चउ छत्तीसा तिमि र उगणवीस चत्तारि। ॥३५६॥ | तेवीसेग । चउर्वास छक्कर इगतीस एकं च ॥ २०८ ॥ चोत्तीस पंच तेरस दुगं च ई बायाल पंचभागाणि । छायालदुगे For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372