Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीज्योति करंडके
॥३५७॥
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गं पण डे चउपणे चैव दो भागा ॥ २०९ ॥ नव छच्छप्पण्णेगं ई एकावसिं च तिष्णि बोद्धव्या । चत्तालीस तिगहिय तेत्तीसा चैव तेत्तीसा ॐ । २१० ॥ चउयाला चइगवीसं ति छप्पण्ण एग नव छकं । चउपण दुगे 들 पण छायालीस च दो चैव ॥ २११ ॥ बायाल पंच तेरस दुगं च चोत्तीस पंचभागा य है । इगतीसेगं चउवीस छक रैं तेवीस एकं च ॥ २१२ ।। गुणवीसा च छत्तीस तिथि में एकारसेव चउर । दो दो तेत्तीसह नत्थि चउपि सतंसा || २१३ || नवनउई य सहस्सा छच्चेव सया हवन्ति चत्ताला । सूराण ऊ अवाहा अग्भितरमंडलट्ट(णं ।। २१४ ॥ एकं च संयसहस्सं छच्चेव सया य होंति सट्टीया । सूराण ऊ अबाहा बाहिरगे मंडले नेया ।। २१५ ।। पंचव जोयणाई पणतीसं एगसट्टिभागा य । एस अबाहादुड्डी एकेके मंडले रविणो ॥ २१६ ॥ चन्दस्स जोयणाणि य विसत्तरी एकवण्ण असा य । एगडिकते छेए नायव्वा सत्तभागा य ।। २१७ ।। सत्तरस जोयणाणि य परिश्यवुडी उ मण्डले नियमा । अट्ठत्तीसं भागा एगट्टिकएणं छेएण ॥२१८॥ रुवूणमंडलगुणं परिही बुद्धिं तु पक्खिवे नियमा । पढमपरिहपिमाणे सो परिही मंडले तम्मि ।। २१९ ।। चंदस्सवि नायव्वा परिरयबुड्डा उ मंडले नियमा । दो चैव जोयणसया तीसा खलु होंति साहीया ||२२० || इइ मंडलविभागनामं दसमं पाहुडं । छहिं मासेहिं दिणयरो तेसीयं चरइ मंडलसयं तु । अयणम्मि उत्तरे दाहिणे य एसो विही होइ ।। २२१ ।। तेसीयं दिवससयं अयणे सूरस्स होइ पडिपुन्नं । सुण तस्स कारगविहिं पुव्वायरिओवरसेणं ।। २२२ ॥ सूरस्स अयणकरणं पव्वं पनरससंगुणं नियमा । तिहिसंखित्तं संत बावडी भागपरिहीणं ।। २२३ ।। तेसीयस्यविभत्तमि तम्मि लद्धं तु रूवमा एज्जा । जह लद्धं होइ समं नायब्वं उत्तरं अयणं ||२२४|| अह हवइ भागलद्धं विसमं जाणाहि दक्खिणं अयणं । जे असा ते दिवसा होंति पवत्तस्स अयणस्स ॥ २२५ ||
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मंडल मानं ११ चन्द्र
६. यावृत्तयः
१२
॥३५७॥

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