Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीज्योति कइया विइया समप्पिहिइ तिही । बिइयावाए तइया तइयाए वा चउत्थीओ॥ ११३ ।। सेसासु चेव काहिइ तिहिसु ववहारग- अवमरात्राः करंडकेणियदिट्ठासु । सुहमेण परिल्लतिही संजायइ कम्मि पव्वमि? ॥ ११४ ।। रूवाहिगा उ ओया बिगुणा पवा हवंति कायब्वा ||४|
५ ज्योतिएमेव हवइ जुम्मे एक साजुया पव्वा ॥ ११५॥ इइ ओमरत्तनिप्फत्ती नाम पाहुड पंचमं ॥
कमानं ६ ॥३५१॥
चंदा सूरा तारागणा य नक्खत्त गहगणा चेव । पंचविहा जोइसिया ठिया विचारी य ते दुविहा ॥ ११६ ॥ जंबूदीवो लवणोदही य दीवो य धायईसंडे । कालोदही समुद्दो पुक्खरदीवस्स अद्धं च ।। ११७ ॥ एए अड्डाइज्जा दीवा दो उदहि माणुसं खत्तं | एत्थं समाविभागा देवारणं परं तत्तो ।। ११८ ।। एवं माणुसखित्तं एत्थ विचारीणि जोइसगणाणि । परतो दीवसमुद्द | अवट्टियं जोइसं जाण ॥ ११९ ।। दो चंदा इह दीवे चत्तारि य सागरे लवणतोए । धायइसंडे दीवे वारस चंदा य सूरा य
॥ १२० ॥धायइसंडप्पभिइ उद्दिट्ठा तिगुणिया भवे चंदा । आइल्लचंदसहिया तइ होंति अणंतरे परतो ।। १२१ ।। आइच्चाणंपि भवे | एसेव विही अणूणगो सब्यो । दीवेसु समुद्देसु य धायइसंडेहिं जे परतो ।। १२२ ॥ नक्खत्तट्ठावीसं अट्ठासीई महम्गहा भणिया ।
एगससीपरिवारो एत्तो तारावि मे सुणसु ॥ १२३ ॥ छावडिं च सहस्सा नव य सया पंचसत्तरा होति । एगससीपरिवारों तारा| गणकोडिकोडीणं ॥ १२४ ॥ जइ चंदा तइगुणिओ खेत्ते खेत्तम्मि एस परिवारो। चंदेसु समा सूरा नायव्वा सबखेत्तेसु ॥ १२५ ॥
तेसिं नक्खत्ताण संठाणमहकमेण वोच्छामि | माणं च तारगाण य जह दिदं सम्बदंसीहिं ॥१२६ ॥ गोसीसावली १ काहार २ | सउणि ३ पुप्फोवयार ४ वावी ५-६ य । नावा ७ आसक्खंधे ८ भग ९ छुरधारा १० य सगड्डद्धी ११ ॥ १२७ ।। मिगसीसा
18॥३५॥ वली १२ रुहिरबिंदु १३ तुल १४ वद्धमाणग १५ पडागा १६ । पागारे १७ पलियंके १८-१९ हत्थे २० मुहपुप्फए २१ चेव
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