Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 332
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिंकृते श्रीचन्द्र-छा मेत्ताई दोवि निम्मवइ बन्धगद्धाए । गुणसढीसंखभागं अंतरकरणेण उकिरइ ।। ७५० ॥ अंतरकरणस्स विही घेत्तुं घेत्तुं ठिईउIDI सर्वोप | मज्झाओ । दलिय पढमठिईए विछुब्भइ तहा उवरिमाए ॥७५१॥ इगदुग आवलिससाए णत्थि पढमा उदीरणागालो । पढमठिईए शमना पञ्चसंग्रहे उदीरण बीयाओ एइ आगालो ।। ७५२ ॥ आवलिमेत्तं उदएण वेइउं ठाइ उवसमद्धाए । उवसामयं तत्थ भवे सम्मत्तं मोक्खबीयं कर्मप्रकृती जं ॥ ७५३ ॥ उवरिमठिइअणुभागं तिहा तओ कुणइ चरिममिच्छुदए । देसघाएण सम्म इयरेणं मिच्छमीसाई ॥ ७५४ ॥ सम्मे ॥३२८॥ | थोवो मीसे असंखओ तस्स संखओ सम्मे । पइसमयं इइ खवो अंतमुहुत्ताउ विज्झाओ ।। ७५५ ॥ गुणसंकमेण एसो संकमो होइ सम्ममासेसु । अंतरकरणम्मि ठिओ कुणइ जओ सप्पसत्थगुणो ॥ ७५६ ॥ गुणसंकमेण समगं तिण्णिवि थक्कंति आउवज्जाणं । मिच्छत्तस्स उ इगिदुगावलिसेसाए पढमाए ॥ ७५७ ॥ उवसंतद्धाअंते विहीए उक्कड्डियस्स दलियस्स । अज्झवसाणविसेसा एकस्सुदओ भवे तिण्हं ।। ७५८ ॥ छावलिए सेसाए उवसमअद्धाए जाव इगिसमयं । असुहपरिणामतो कोइ जाइ इह सास| णतंपि ॥७५९।। सम्मत्तेणं समगंसव्वं देस च कोइ पडिवज्जे । उवसंतदंसणी सो अंतरकरणडिओ जाव ।७६०। सम्मत्तुप्पायणा ॥ वेयगसम्मदिट्टी सोहीअद्धाए अजयमाईआ। करणदुगेण उवसमं चरित्तमाहेस्स चेट्ठति ।।७६१॥ जाणण गहणणुपालणविरओ विरईइ अविरओऽनसिं । आइमकरणदुर्गणं पडिवज्जइ दोण्हमण्णयरं ॥ ७६२ ॥ उदयावलिए उप्पि गुणसेढिं कुणइ सह चरित्तेण । अंतो ॐा असंखगुणणाए तात्तियं वड्डए कालं ।। ७६३ ॥ परिणामपच्चएणं गमागमं कुणइ करणरहिओपि । आभोगनट्ठचरणो करणे काऊण | पावेइ ।।७६४॥ परिणामपच्चएणं चउब्विहं हाइ वडई वावि । परिणामवठ्ठयाए गुणसेढिं तत्तियं रयइ ॥७६५॥ चरित्तुप्पत्ती॥ सम्मुप्पा ॥३२८॥ यणविहिणा चउगइआ सम्मदिट्ठी पज्जत्ता । संजोयणा विजोयंति न उण पढमठितिं करेंति ।। ७६६ ॥ उवरिमगे करणद्गे दलियं For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372