Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 331
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्रपिकृते । पञ्चसंग्रहे कमप्रकृतो ॥३२७॥ SASARAGARLS सर्वोपअथ उपशमनाकरणम्-देसुवसमणा सव्वाण होइ सव्वोवसामणा मोहे । अपसत्थपसत्था जा करणुवसमणाए अहि-& शमना गारो ॥ ७३३ ॥ सव्वुवसमणा जोगो पज्जत्तपणिदिसण्णिसुभलेसो । परियत्तमाणसुभपगइबन्धओऽतीव सुझंतो ॥ ७३४ ॥ असुभसुभे अणुभागे अणंतगुणहाणिवुड्डिपरिणामो । अंतो कोडाकोडी ठिइओ आउं अबंधतो ॥ ७३५ ॥ बंधादुत्तरबंधं पलिओवमसंखभागऊणूणं । सागारे उवओगे वट्टतो कुणइ करणाई ।। ७३६ ।। पढमं अहापवत्तं बीयं तु नियट्टि तइयमणियट्टी । अंतोमुहुत्तियाई उवसमअद्धं च लहइ कमा ।। ७३७ ।। आइल्लेखं दोसुं जहण्णउक्कोसिआ भवे सोही । जं पइसमयं अज्झवसाया लोगा असंखेज्जा ।। ७३८ ।। पइसमयमणतगुणा सोही उड्ढामुही तिरिच्छाओ । छट्ठाणा जीवाणं तइएवुड्डामुही एका ॥ ७३९ ।। गंतुं | संखिज्जंसं अहापवत्तस्स हीण जा सोही । तीए पढमे समए अणंतगणिआ उ उकोसा ।। ७४०॥ एवं एकंतरिया हेढुवार जाव || हीण पज्जत्ते । तत्तो उक्कोसाओ उवरुवार होइ गंतगुणा ।। ७४१ ॥ जा उकोसा पढमे तीसे गंता जहानिया बीए । करणे तीए जेट्ठा एवं जा सव्वकरणंपि ॥ ७४२ ॥ अपुचकरणसमग कुणइ अपुब्बे इमे उ चत्तारि। ठितिघायं रसघायं गुणसेढी बंधगद्धा य ।।७४३।। उक्कोसेणं बहुसागराणि इयरेण पल्लऽसंखंसं । ठितिअग्गाओ घायइ अंतमुहुत्तेण ठितिखंडं ।।७४४॥ असुभाणंतमुहुत्तेण हणइ रसखंडगं अणंतसं । करणे ठितिखंडाणं तम्मि उ रसकंडगसहस्सा ॥ ७४५ ॥ घाइयठिइओ दलिय घेत्तं घेतुं असंखगुणणाए । साहिय दुकरणकाले उदयाओ रयइ गुणसीढ ॥ ७४६ ॥ करणाइए अपव्वो जो बन्धो सो न होइ जा अण्णो । बंधगअद्धा सा * तुल्लिगा उ ठिइकंडगाए ।। ७४७ ।जा करणाईऍ ठिई करणते तीए होइ संखंसो । अनियट्टीकरणमओ मुत्तावलिसंठियं कुणइ ॥३२७॥ ॥ ७४८ ।। एवमणियट्टिकरणे ठितिघायाईणि हुंति चउरोऽवि । संखेनंसे सेसे पढमठिई अंतरं च भवे ।। ७४९ ॥ अंतमुहुत्तिय RECORRECRUSRAEX For Private and Personal Use Only

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