Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ
॥३३१॥
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काले चि पुरिसं उवसामए अवेदो सो । बन्धो बत्तीससमा संजलणियराण उ सहस्सं । ८०२ || अव्वेय पढमसमया कोहतिगं आढवेह उवसमिंउ । तिसु पडिगहया एक्का उदओ य उदीरणा बन्धो ।। ८०३ ।। फिड्डति आवलीए सेसाए सेसयं तु पुरिससमं । एवं सेस कसाया वेयइ थिबुगेण आवलिया || ८०४ ॥ चरिमुदयम्मि जहण्णो बन्धो दुगुणो उ होइ उवसमगे । तयणंतरपगईए चउग्गुणोऽन्नेसु संखगुणो ।। ८०५ ।। लोहस्स उ पढमठिहं बीयठिईओ उ कुणइ तिविभागं । दोसुं दलनिक्खवो तइओ पुण किट्टि वेयद्धा ।। ८०६ || संताणि बज्झमाणगसरूवओ फड्डगाणि जं कुणइ । सा अस्सकण्णकरणद्ध मज्झिमा किट्टिकरणद्धा ॥ ८०७ ॥ अप्पुव्वविसोहीए अणुभागो णूणीवभयणं किट्टी । पढमसमयम्मि रसफड्डवग्गणाणत भागसमा ||८०८|| सव्वजहण्णगफड्डग अणंतगुणहीणियाउ ता रसओ । पइसमयम संखसो आइमसमयाउ जावंतो ||८०९ || अणुसमयमसंखगुणं दलियमणंतंसओ उ अणुभागो । सव्वेसु मंदरसमाइयाण दलियं विसेसूणं ।। ८१० || आइमसमयकयाणं मंदाईणं रसो अगंतगुणो । सब्बुकस्सरसावि हु उवरिमसमयस्तं ।। ८११ ।। किट्टीकरणद्ध। ए तिसु आवलियासु समयहीणासु । न पडिग्गहया दोन्हवि सङ्काणे उपसमिज्जति ।। ८१२ ।। | लोभस्स अणुवसंत किट्टी उदयावली य पुब्वृत्तं । बायरगुणेण समगं दोण्हवि लोभा समुवसंता ।। ८१३ || सेसद्धं तणुरागे तावइआ किडिओउ पढमठिई । वज्जिय असंखभागं हेट्ठवरिमुदीरए सेसा ।। ८१४ ॥ गेव्हंतो य मुयंतो असंखभांग तु चरिमसमयम्मि | उवसामिय बीयठि उवसंतं लभइ गुणठाणं ।। ८१५ ।। अन्त| मुहुत्तमेतं तस्सवि संखेज्जभागतुल्लाओ । गुणसेढी सब तुला य पएसकालेहिं ॥ ८१६ ।। करणाय नोवसंतं संकमणोवट्टणं तु दिट्ठितिगं । मोत्तृण विलोमेणं परिवडई जा पमत्तोत्ति ॥ ८१७ ॥ उक्कड्डित्ता दलियं पढमठिति कुणड़ बीयठितिर्हितो । उदयाइ विसेमूर्ण आवलिउप्पि असंखगुणं ।। ८१८ ॥ जावइया गुणसेढी
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सर्वोप शमना
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