Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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सर्वोपशमना
कर्मप्रकृती
श्रीचन्द्र-18 समो । बन्धो कमेण पल्लं वीसगतीसाण उ दिवढे ।। ७८४ ॥ मोहस्स दोणि पल्ला संतेवि हु एवमेव अप्पबहू । पलियमित्तम्मि | र्षिकृते 18 बन्धे अण्णो संखेज्जगुणहीणो ॥ ७८५ ॥ एवं तीसाण पुणो पल्लं मोहस्स होइ उ दिवढे । एवं मोहे पल्लं सेसाणं पल्लसंखंसो पञ्चसंग्रहे | | ७८६ ॥ वीसगतीसगमोहाण संतयं जहकमेण संखगुणं । पल्लअसंखेज्जंसो नामागोयाण तो बन्धा ॥ ७८७ ॥ एवं तीसाणंपि
| हु एक्कपहारेण मोहणीयस्स । तीसगअसंखभागो ठितिबन्धो संतयं च भवे ।। ७८८ ॥ वीसग असंखभागे मोहं पच्छाओ घाइ तइ
यस्स । वीसाण तओ घाई असंखभागम्मि बझंति ॥७८९|| अस्संखसमयबद्धाणुदीरणा होइ तम्मि कालम्मि । देसे घाइरसं तो | मणपज्जवअंतरायाणं ।। ७९० ॥ लाभाहीणं पच्छा भोगअचक्खूसुयाण तो चक्खू । परिभोगमईणं तो विरियस्स असेढिगा घाई
॥ ७९१ ।। संजमघाईण तओ अंतरमुदओ उ जाण दोण्हं तु । वेयकसायण्णयरे सोदयतुल्ला य पढमठिई ।। ७९२ ॥ थीअपुमोदय-14 | काला संखेज्जगुणो उ पुरिसवेयस्स । तस्सवि विसेसअहिओ कोहे तत्तोवि जहकमसो ॥ ७९३ ॥ अंतकरणेण समं ठितिखंडगवंधगद्धनिष्फत्ती । अंतरकरणाणंतरसमये जायंति सत्त इमे ॥ ७९४ ॥ एगट्ठाणणुभागो बंधो उद्दीरणा य संखसमा । अणुपुब्बीसंकमणं लोहस्स असंकमो मोहे ॥ ७९५ ।। बद्धं बद्धं छसु आवलीसु उवरेणुदीरणं एइ । पंडगवेउवसमणा असंखगुणणाए जावंतं ।। ७९६ ॥ अंतरकरणपविट्ठो संखासखंस मोह इयराणं । बंधादुत्तर बंधं एवं इत्थीए संखसे ।। ७९७ ॥ उवसंते घाईण संखेज्जसमा परेण संखंसो । बन्धो सत्तण्हेवं संखेज्जतमंमि उवसंते ॥ ७९८ ॥ नामगोयाण संखा बन्धो वासा असंखिया तइए । तो सव्वाणवि | संखा तत्तो संखेज्जगुणहाणी ॥ ७९९ ॥ जं समए उवसंतं छकं उदयट्टिई तया सेसा । पुरिसे समऊणावलिदुगेण बद्धं अणुवसंत
८०० ।। आगालेणं समगं पडिगया फिडइ पुरिसवेयस्त । सोलसवासियवन्धो चरमो चरमेण उदयेण ॥ ८०१॥ तावइ
RAHARASEX
॥३०॥
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