Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 339
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३३५॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सयछावत्तरा एवं ८६६ ॥ मिच्छाइ अप्पमत्तंतयाण अट्ठट्ठ हुंति उदयाणं । चउवीसाओ सासणमीसअपुव्वाण चउचउरो ॥। ८६७ ॥ चडवीसगुणा एए बायरसुहुमाण सत्तरस अन्ने । सब्वेसुवि मोहुदया पण्णट्ठा बारससयाओ || ८६८ ।। उदयविगप्पा जे जे उदीरणावि हुँति ते ते उ । अंतमुहुत्तिय उदया समयादारम्भ भंगा य || ८६९ || मिच्छत्तं अणमीसं चउरो चउरो कसाय वा सम्मं । ठाइ अपुव्वे छकं वेयकसाया परे तओ लोभो ||८७० || (गीतिः) अट्ठगसत्तगछक्कग चउतिगदुगएकगाहिया वीसा । तेरस बारेकारस संते पंचाई जा एकं ॥ ८७१ || अणमिच्छमीससम्माण अविरया अप्पमत्त जा खवगा । समकं अट्ठकसाए नपुंस इत्थी कमा छकं ॥ ८७२ ॥ पुंवे कोहाई नियट्टि नासेर सुहुमतणुलोभं । तिन्नगति पण चउसुं तिकारस चउवि सताणि ।। ८७३ ।। छब्बीसणाइमिच्छे उच्चलणा एव सम्ममीसाणं । चउवीस अणविजोए भावो भूओवि मिच्छाओ || ८७४ | सम्ममीसाण मिच्छो सम्मो पढमाण होइ उब्वलगो । बन्धावलिआ उप्पि उदओ संकेतदलिअस्स ।। ८७५ ।। बावीसं बन्धंते मिच्छे सत्तादयंमि अडवीसा । संत छ सत्त मीसा य होंति सेसेसु उदयसु ॥ ८७६ || सत्तरसबन्धगे छोदयम्मि संत इगट्टचउवसा । सगतिदुवीसा य सगड़गोदए यरिगवीसा ।। ८७७ ।। देसाइसु चरिमुदए इगवीसा वज्जियाई संताई । सेसेसु होंति पंचवि तिसुवि अपुव्वंभि संततिगं ॥ ८७८ ॥ पंचाइ बन्धगेसुं इगट्ठचउवीसम्बन्धगेकं च । तेरस बारेकारस य होंति पण बन्धि खवगस्स ।। ८७९ ।। एगाहिया य बन्धा चउबन्धगमाइआण संतसा । बन्धोदयाण विरमे जं संतं छुभइ अण्णत्थ ॥ ८८० ॥ सत्तावीसे पल्लासंखसो पोग्गलद्ध | छव्वीसे । बे छावडी अडचउवीसिगवीसे उ तित्तीसा ||८८१|| अंतमुहुत्ता उ ठिई तमेव दुहओऽवि सेससंताणं । होइ अणाइ अणतं अणाइसंतं च छब्बीसा ।। ८८२ ।। अप्पज्जत्तग जाई पज्जत्तगईहिं पेरिआ बहुसो । बन्धं उदयं च उति सेसपगईओ नामस्स For Private and Personal Use Only सप्तप्ति कायां संवेधः ॥३३५॥

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