Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 336
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 4%A5. श्रीचन्द्र-४ उदयवई तासु हीणगं परओ । उदयावलीमकाउं गुणसेढी कुणइ इयराणं ॥ ८१९ ।। संकमाउदीरणाणं णस्थि विसेसो उ एत्था 1 देशोपपिंकृते पुच्चुत्तो । जे जत्थ उ वोच्छिण्णं जायं वा होइ तं तत्थ ।। ८२० ॥ वेइज्जमाणसंजलण कालओ अहिअमोहगुणसढी । पडिवत्ति शमना पञ्चसंग्रहे कसाउदए तुल्ला सेसेहिं कम्मेहिं ।। ८२१ ॥ खवगुवसामगपच्चागयाण दुगुणो तहिं तहिं वन्धो । अणुभागोऽणतगुणो असुभाण निधत्तनिकर्मप्रकृतो | काचने सुभाण विवरीओ ॥८२२।। परिवाडीए पडिउं पमत्तइयरत्तणेण बहु किच्चा । देसजइ संजमं वा सासणभावं च कोइ वये ॥८२३॥ ॥३३२॥ उवसमसम्मत्तद्धा अंतो आउक्खया धुवं देवो । जण तिसु आउएमुं बद्धेमु न सेढिमारुहइ ।। ८२४ । सेढी पडिओ तम्हा छडा | वली सासणोवि देवेसु । एगभवे दुक्खुत्तो चरित्तमोहं उवसमज्जा ॥ ८२५ ।। दुचरिमसमये नियगोदयस्स इत्थी नपुंसगोऽन्नोन्नं । समइत्तु सत्त पच्छा किंतु नपुंसो कमारदे ।। ८२६ ।। इति सर्वोपशमना ॥ अथ देशोपशमना-मूलुत्तरकम्माणं पगडीठितिमादि होइ चउभेया । देसकरणेहिं देसं समेइ जं देससमणा तो ॥८२७।। उव्वट्टणओवट्टणसंकमकरणाई हुंति नन्नाई । देसोवसामिअस्सा जाऽपुन्चो सव्वकम्माणं ॥ ८२८ ॥ खवगो व सामगो वा पढमकसायाण दंसणतिगस्स । देसोवसामगो सो अपुव्वकरणतगो जाव ॥ ८२९ ॥ साइयमाइ चउद्धा देसुवसमणा अणाइसंतीणं । मूलुत्तरपगईणं साईअधुवाओ धुवाओ ॥८३०॥ गोयाउयाण दोण्हं चउत्थ छट्ठाण होइ छ सतण्हं । साइयमाइ चउद्धा सेसाणं एगठा- ॥३३२॥ णस्स ॥८३१।। उवसामणा ठिईए उक्कोसा संकमेण तुल्लाओ । इयरावि किंतु अभवी उबलग अपुवकरणेसु ॥८३२॥ अणुभागपएसाणं सुभाण जा पुव्वामित्थ इयराणं । उक्कोसियरं अभविय एगिंदी देससमणाए ॥ ८३३ ॥ इति देशोपशमनाकरणम् ॥ 15 For Private and Personal Use Only

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