Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीचन्द्रपिंकृते
पंचसंग्रहे कमप्रकृतो
॥३२१॥
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आवलियं । तद्दालियं निक्खिवई अह ठितिठाणेसु सव्र्व्वसु ।। ६३४ ॥ उदयावलिउवरित्थं ठाणं अहिकिच्च होइ अइहीणो । निक्खेवो सव्वोवरि ठिठाणवसा भवे परमो ॥ ६३५ ।। समयाहियऽइत्थवणा बन्धावलिया य मोत निक्खेवो । कम्मठिई बन्धोदय आवलिये मोतु ओढे ।। ६३६ || निव्वाघाए एवं ठितिघाओ एत्थ होइ वाघाओ । वाघाए समऊगं कंडगमइथावणा होइ ।। ६३७ ।। उक्कोसं डायटिई किंचूणा कंडगं जहण्णं तु । पल्लासंखस डायठिईउ जत्त परमबन्धो || ६३८ || चरमं नोवट्टिज्जइ जाव अणंताणि फड्डगाणि तओ । उस्सक्किय उव्बट्टइ उदया ओवट्टणा एवं ।। ६३९ ।। अइत्थावणाइयाओ सन्नाओ सुविपुववृत्ताओ । किंतु अणतभिलावेण फडगा तासु वत्तव्या ।। ६४० ॥ थोवं पएसगुणहाणि अंतरे दुसुवि हीणानक्खेवो । तुल्लो अनंतगुणिओ दुवि अइत्थावणा चैवं ।। ६४१ ।। तत्तो वाघायणुभागकंडगं एकत्रग्गणाहीणं । उकोसो निक्खेचो तुल्लो सविसेससंतं च ।। ६४२ ॥ आबन्धं उब्वट्टइ सव्वत्थोवट्टणा ठितिरसाणं । किट्टीवज्जे उभयं किट्टिस ओवट्टणा एक्का || ६४३ ॥ इति उद्वर्त्तनाऽपवर्त्तने ॥
अथ उदीरणा - जं करणेणोकाड्डय दिज्जड उदए उदीरणा एसा । पगइ ठिइमाइ चउहा मूलुत्तरभेयओ दुविहा ।। ६४४ ॥ वेयणियमोहणीयाण होइ चउहा उदीरणाउस्स । साई अधुवा सेसाण साइवज्जा भवे तिविहा ।। ६४५ ।। अधुवोदयाण दुविहा मिच्छस्स चउव्विहा तिहन्नासु । मृलुत्तरपगईणं भणामि उदीरगा तो || ६४६ ।। घाईणं छउमत्था उदीरगा रागिणो उ मोहस्स । | वेयाऊण पमत्ता सजोगिणो नामगोयाणं ॥ ६४७ ॥ उवपरघायं साहारणं च इयरं तणूए पज्जत्ता । छउमत्था चूउदंसणनाणावरणंतरायाणं ॥ ६४८ ।। तस्थावराइ तिगतिगआउगईजातिदिट्टिवेयाणं । तन्नामणुपुब्वणिपि किंतु ते अंतरगईए ॥ ६४९ ॥ आहारी उत्तरतणुनतिरितव्वेयए पमोत्तूर्णं । उद्दीरंती उरलं ते चैव तसा उवंग से ॥ ६५० ।। आहारी सुरनारगसन्नी इयरे
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प्रकृत्यु
दीरणा
॥३२१ ॥

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