Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 323
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रद श्रीचन्द्र- मायाणमपि कसिणो ॥ ६०१॥ चउरुवसमित्तु खिप्पं लोभजसाणं ससंकमस्संते । चउसमगो उच्चस्सा खवगो नीया चरिमबन्धे में पिंकृते । संक्रमः ॥ ६०२ ॥ परघायसकलतसचउसुसरादितिसासखगतिचउरंसं । सम्मधुवा रिसमजुया संकामइ विरचिया सम्मो ॥६०३ ॥ पंचसंग्रह नरयदुगस्स विछोभे पुचकोडीपुहुत्तनिचियस्स । थावरउज्जोयायवएगिदाणं नपुंससमं ।। ६०४ ॥ तेत्तीसयरा पालिय अंतमुहुत्तूणकमप्रकृती गाई सम्मत्तं । बन्धित्तु सत्तमाओ निग्गमसमए नरदुगस्स ॥ ६०५॥ तित्थयराहाराणं सुरगइनवगस्स थिरसुभाणं च । सुमधुवकाबन्धीण तहा सगवन्धा आलिगं गन्तुं ।। ६०६ ॥ सुहमेसु निगोएसं कम्मठिति पलियऽसंखभागणं । वसिउ मंदकसाओ जहन्नम जागो उ जो एह ।। ६०७॥ जोग्गेम तो तसेसु सम्मत्तमसंखवार संपप्प । देसविरहं च सव्वं अगउचलणं च अडवारा ॥ ६०८॥13 चउरुवसमित्तु मोहं लहुं खतो भवे खवियकम्मो । पाएण तेण पगयं पडुच्च काओवि सविसेस ॥ ६०९॥ हासदुभयकुच्छाणं खीणताण च बन्धचरिमम्मि । समए अहापवत्तेण ओहिजुगले अणोहिस्स ॥६१० ॥ थीणतिगइस्थिमिच्छाणं पालिय बे छसट्टिा: | सम्मत्तं । सगखवणाए जहन्नो अहापवत्तस्स चरमम्मि ॥ ६११ ॥ अरइ सोगट्टकसाय असुमधुवबन्धिअथिरतियगाणं । अस्सायस्साल. य चरिमे अहापदत्तस्स लहु खवगे ॥ ६१२ । हस्सद्धं गुण पूरिय सम्म मीसं च धरिय उक्कोस । कालं मिच्छत्तगए चिरउव्वलगस्स चरिमम्मि ॥ ६१३ ।। संजोयणाए चउरुवसमित्तु संजोयइत्तु अप्पद्धं । छावट्ठिदुगं पालिय अहापयत्तस्स अंतम्मि ॥ ६१४ ।। हस्सं | कालं बंधिय विरओ आहारमविरई गन्तुं । चिरउव्वलणे थोवा तित्थं बन्धालिगा परओ ॥ ६१५॥ वेउधिकारसग उन्वलियं बन्धिऊण अप्पळ् । जेहितिनारयाओ उचट्टित्ता अबन्धित्तुं ॥ ६१६ ॥ थावरगसमुव्वलणे मणुदुगउच्चाण सुहुमबद्धाणं । एमेव | समुन्बलणे तेऊबाऊसुवगयस्स ।। ६१७ ॥ अणुवसमित्ता मोहं सायस्स असायअंतिमे बन्धे । पणतीसाए सुभाणं अमुबकरणालि CSCARSCRX For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372