Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 322
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्रीचन्द्रर्षिकृते पञ्चसंग्रहे कर्मप्रकृतौ ॥३१८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मिऊण वेयइ जं एसो थियुगसंकामो || ५८४ | गुणमाणेणं दलिअं हीरन्तं थोवरण निट्ठाइ । कालोऽसंखगुणेणं अह विज्झाउव्वलणगाणं ।। ५८५ ॥ जं दुरिमस्स चरिमे सपरट्ठाणेसु देइ समयम्मि । ते भागे जहकमसो अहापवत्तुव्वलणमाणे ।। ५८६ ।। चउहा ध्रुव छव्वीस सयस्स अजहन्न संकमो होइ । अणुकोसोविद्दु वज्जिय ओरालावरणनवविग्धं ॥ ५८७ || सेसं साई अधुवं जहन्न सामी य खवियकम्मंसो । ओरालाइसु मिच्छो उक्कोसस्सा गुणियकम्मो ॥ ५८८ ।। बायरतसकालूगं कम्मठिई जो उ बारपुढवीए । पज्जत्तापज्जत्तगदीहेयर आउगो बसिउं ॥ ५८९ || जोगकसाउकोसो बहुसो आउं जहन्नजोगेण । बन्धि उवरिल्लासुं ठिइसु निसगं बहु किच्चा || ५९० ।। बायरतसकालमेवं वसित्तु अंत य सत्तमखिईए । लहु पज्जत्तो बहुसो जोगकसायाहिओ होइ ॥ ५९९ || जोगजवमज्झ उवीरं मुहुत्तमच्छित्तु जो विअवसाणे । तिचरिमदुचरिमसमए पूरितु कसायमुकोसं ।। ५९२ ।। जोगुकोसं दुरिमे चरिमसमए उ चरिमसमयम्मि | संपुन्नगुणियकम्मो पगयं तेणेह सामित्ते ॥ ५९३ ॥ तत्तो तिरियागय आलिगोवरिं उरलएकवीसाए । सायं अनंतर बन्धिऊण आलीपरमसाए || ५९४ ॥ कम्मचउके असुभाण बज्झमाणीण सुडुमरागन्ते । संछोभणम्मि नियगे चवीसाए नियट्टिस्स ।। ५९५ ।। संछोभणाए दोहं मोहाणं वेयगस्त खणसेसे । उप्पाइय सम्मत्तं मिच्छतगए तमतमाए ।। ५९६ ।। भिन्नमुहुत्ते सेसे जोगकसाउकसाई काऊण । संजोअणाविसंजोयगस्स संछोभणा एसि ।। ५९७ ॥ ईसाणा गयपुरिसस्स इत्थियाए व अट्ठवासाए । मासपुडुत्तन्भहिए नपुंसगे चरिमसंछोभो ।। ५९८ ।। पूरितु भोगभूमीसु जीविय वासाणि संखयाणि तओ । हस्सठिई देवागय लहुछोभे इथिवेयस्स ।। ५९९ ।। वरिसवरिस्थि पूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लभिय । गन्तुं मिच्छत्तमओ जहन्नदेवहिं भोच्चा ।। ६०० || आगन्तुं लहु पुरिसं संछुभमाणस्स पुरिसवेअस्स । तस्सेव सगे कोहस्स माण For Private and Personal Use Only प्रदेशसंक्रमः ॥३१८॥

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