Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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स्थितिसंक्रमः
श्रीचन्द्र- पढमचउकं आइल्लवज्जियं दो अणिच्च आइल्ला । संकमहि अट्ठवीसे सामी जहसंभवं नेया ॥ ५३६ ॥ संकभइ नन्नपगई पगईओ पिकृते पगइसंकमे दलियं । ठितिअणुभागा चेवं ठंति तहत्था तयणुरूवं ।। ५३७ ॥ दलियरसाणं जुत्तं मुत्तत्ता अन्नभावसंकमणं । ठितिपंचसंग्रहेलिकालस्सन एवं उउसंकमणंपिव अदुटुं॥ ५३८ ।। इति प्रकृतिसंक्रमः॥
उव्वट्टणं च ओवट्टणं च पगईतरम्मि वा नयणं । बंधे व अबन्धे वा जे संकामो इइ ठिईए ॥ ५३९ ।। जासिं बन्धनिमित्तो उकोसो बन्ध मूलपगईणं । ता बन्धुक्कोसाओ सेमा पुण संकमुक्कोसा ॥ ५४० ॥ बन्धुकोसाण ठिई मोत्तुं दो आवलीए | संकमइ । सेसा इयराणं पुण आवलियतिगं पमोत्तणं ।। ५४१ ॥ तित्थयराहाराण संकमणे बन्धसन्तएसुपि । अन्तो | कोडाकोडी तहावि ता संकमुकोसा ।। ५४२ ।। एवइयसंतया जे सम्मद्दिट्ठीण सम्बकम्मेसु । आऊणि बन्धुकोसगाणि जे ननसंकमणं ॥ ५४३ ॥ गंतुं सम्मो मिच्छं तस्सुक्कोसं ठिई च काऊग । मिच्छियराणुकोसं करेति ठितिसंकर्म सम्मो ॥ ५४४ ॥ अंतो| मुहुत्तहीणं आवलियदुहीण तेसु सट्ठाणे । उक्कोससंकमपहू उक्कोसगबन्धगन्नासु ।। ५४५॥ बन्धुकोसाणं आवलिए आवलिदुगेण इयराण । हीणा सव्वावि ठिई सो जटिइसकमो भणिओ ।। ५४६ ॥ साबाहा आउठिई आवलिगूणा उ जट्टि इसठाणे । एका ठिई जहन्नो अणुदइयाणं नियसेसा ॥ ५४७ ।। जो जो जाणं खवगो जहनठिइसकमस्स सो सामी । सेसाणं तु सजोगी अंतमुहुत्तं जओ तस्स ।। ५४८ ॥ उदयावालिए छोभो अन्नपगईए जो उ अतिमओ। सो संकमो जहनो तस्स पमाण इमं होइ ।। ५४९ ।। संजलणलोभनाणंतरायदंसणचउक्कआऊणं । सम्मत्तस्स य समओ सगआवलियातिभागम्मि ॥ ५५० ॥ खविऊण मिच्छमीसे मणुओ सम्मंमि खविय सेसम्मि । चउगईओवि उ होउं जहन्नठिति संकमस्सामी ॥५५१ ॥ निदादुगस्स साहिय आवलियदुर्ग
॥३१५॥
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