Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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कर्मप्रकृतौ ॥२७॥
करणं
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सरदुगाणुपाणूणं । नियगंते केवलिणो सव्वविसुद्धीए सव्वासि ।। ३१० ॥ तप्पगओदीरगतिसंकिलिट्ठभावो असव्वपगईणं । नेयो | जहन्नसामी अणुभागुत्तो य तित्थयरे ॥ ३११ ॥ ओहीर्ण ओहिजुए अइसुहवेई य आउगाणं तु । पढमस्स जहन्नठिई सेसाणुक्कोसग-1 |ठिईओ ।। ३१२ ।। इति उदीरणाकरणम् ।।
अथ उपशमनाकरणम्-करणकयाऽकरणावि य दुविहा उवसामण स्थ बियाए । अकरणअणुइनाए अणुओगधरे पणिवमायामि ।। ३१३ ।। सच्चस्स य देसस्स य करणुवसमणा दूसन्नि एक्विका। सब्बस्स गुणपसत्था देसस्सवि तासि विवरीया ॥ ३१४।। | सव्वुवसमणा मोहस्सेव उ तस्सुवसमक्किया जोग्गो | पंचदिओ उ सन्नी पज्जत्तो लद्धितिगजुत्तो ।। ३१५ ।। पुव्वंपि विसुझंतो |
गठियसत्ताणइक्कमिय सोहिं । अन्नयरे सागारे जोगे य विसुद्धलेसासु ॥ ३१६ ॥ ठिइ सत्तकम्म अंतोकोडीकोडी करेत्तु सत्तण्हं । | दुट्ठाणं चउठाणे असुभ सुभाणं च अणुभागं ॥ ३१७ ।। बंधतो धुवपगडी भवपाउग्गा सुभा अणाऊ य । जोगवसा य पएसं उक्को&|सं मज्झिम जहण्णं ॥३१८॥ ठिइबंधद्धापूरे नवबंधं पल्लसंखभागूणं । असुभमुभाणणुभागं अणंतगुणहाणिवुड्डोहिं ॥ ३१९ ॥ करणं
अहापवत्त अपुवकरणमनियहिकरणं च । अंतोमुहुत्तियाई उवसंतद्धं च लहइ कमा ।। ३२० ।। अणुसमयं बटुंतो अज्झवसाणाणगंतगुणणाए । परिणामट्ठाणाणं दोसुवि लोगा असंखिज्जा ।। ३२१ ॥ मंदविसोही पढमस्स संखभागाहि पढमसमयम्मि । उक्क&स्सं उप्पिमहो एक्केकं दोण्ह जीवाणं ।। ३२२ ॥ आचरमाओ सेसुक्कोसं पुब्बप्पवत्तमिइनामं । बिइयस्स बिइयसमए जहण्णमवि
अणंतरुक्कस्सा ।। ३२३ ॥ निव्वयणमवि ततो से ठिइरसघायठिइबंधगद्वा उ । गुणसेढीवि य समगं पढमे समये पवतंति ।। ३२४ ॥ उयहिपुहुत्तुक्कस्सं इयरं पल्लस्सऽसंखतमभागो । ठिइकंडगमणुभागाणणंतभागा मुहुर्तते ॥ ३२५ ॥ अणुभागकंडगाणं बहुहिं सह
॥२७३॥
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