Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रीचन्द्रर्षिकृते पंचसंग्रहे ॥२८॥
॥ अथ श्रीमच्चन्द्रर्षिमहत्तरसङ्कलितः पञ्चसङ्ग्रहः ॥
योगोपयोगमागेणा
नमिऊण जिणं वीरं सम्म दुहृदुकम्मनिट्ठवगं । वोच्छामि पंचसंगहमेयमहत्थं जहत्थं च ॥१॥ सयगाइ पंच गंथा जहारिहं जेण | एत्थ सखित्ता । दाराणि पंच अहवा तेण जहत्थाभिहाणमिणं ।। २ ।। एत्थ य जोगुवयोगाण मग्गणा बंधगा य वत्तव्वा । तह चंधियब्व य बंधहेयवो बंधविहिणो य ॥३॥ सच्चमसच्चं उभयं असच्चमोस मणो वई अट्ठ । वेउबाहारोरालमिस्ससुद्धाणि कम्मयगं ॥ ४॥ अन्नाणतिगं नाणाणि पंच इइ अट्ठहा उ सागारो । अचखुदंसणाई चउहुवओगो अणागारो ॥५॥ विगलासन्नीपज्जत्तएसु लभंति कायवइयोगा । सव्वेवि सनिपज्जत्तएसु सेसेसु काओगो ।। ६ ॥ लद्धीए करणेहि य ओरालियमीसगो अपज्जत्ते । पजत्ते | ला ओरालो वेउव्विय मीसगो वावि ॥ ७॥ (कम्मुरलदुगमपजे वेउविदुगं च सनिलद्धिल्ले । पज्जेसु उरालोच्चिय वाए वेउव्विय-14
दुगं च ॥१॥) महसुयअन्नाणअचक्खुदंसणेकारसेसु ठाणेसु । पज्जतचउपणिदिसु, सचक्खुसन्नीसु बारसवि ॥ ८ ॥ इगविगलथावरेसुं, न मणो दोभेय केवलदुगम्मि । इगथावरे न वाया, विगलेसु असच्चमोसेव ॥ ९ ॥ सच्चा असच्चमोसा, दो दोसुविठा | ॥२८३॥ केवलेसु भासाओ । अंतरगइकेवलिएसु, कम्मयऽनत्थ तं विवक्खाए ॥१०॥ मणनाणविभंगेसु, मीसं उरलंपि नारयसुरेसु । केवल
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372