Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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रूपणं
श्रीचन्द्र-18 निदाणं एगहीणं तं ।। ३८२ ॥ अज्जोगिसतिगाणं, उदयवईणं तु तस्स कालेणं । एगाहिंगेण तुल्लं, इयराणं एगहीणं तं ॥ ३८३॥ठावर्गणानिपिकृत ठिइखंडाणइखुडं, खीणसजोगीण होइ जं चरिमं । तं उदयवईणहियं, अन्नगए तूणमियराणं ॥ ३८४ ॥ जं समयं उदयवई, I8| पञ्चसंग्रहेका
| खिज्जइ दुच्चरिमयन्तु ठिइठाण । अणुदयवइए तम्मी, चरिमं चरिमंमि जं कमइ ।। ३८५ ॥ जावइयाउ ठिईओ जसंतलोभाणहाकमप्रकृतील
पवर्तते । तं इगिफड्टुं संते, जहन्नयं अकयसढिस्स ॥ ३८६ ॥ अणुदयतुल्लं उव्वलणिगाण जाणिज्ज दीहउव्वलणे । हासाईणं एगं, ॥३०६॥
| संछोभे फडडुगं चरम ।। २८७ ।। बन्धावलियाईयं, आवलिकालेण बीइठिइहितो । लयठाणं लयठाणं, नासेई संकमेण तु ॥३८८।। | संजलणतिगे दुसमय हीणा दो आवलीण उक्कोसं । फड्डु बिईय ठिइए, पढमाए अणुदयावलिया ।। ३८९ ।। आवलियदुसमऊणा |मेत फड्डु तु पढमठिइविरमे । वेयाणवि चे फड्डा ठिईदुगं जेण तिण्हंपि ।। ३९० ॥ पढमठिईचरमुदये, बिइयठिईए व चरमसं| छोभे । दो फड्डा वेयाणं, दो इगि संतऽहवा एए ॥ ३९१ ॥ चरमसंछोभसमए, एगा ठिइ होइ थीनपुंसाणं । पढमठिईए तदंते, | पुरिसे दोआलिदुसमणं ।। ३९२ ॥ इति श्रीपंचमं बन्धविधिद्वारम् ॥
॥ अथ कर्मप्रकृतिसंग्रहः ॥ बंधणकरणम्-णमिऊण सुयहराणं वोच्छ करणाणि बंधणाईणि । संकमकरण बहुसो अइदि| सिय उदयसंते जे ॥ ३९३ ॥ आवरणदेससव्वक्खएण दुविहेह वीरियं होइ । अहिसंधिअणहिसंधी अकसाइ सलेस उभयपि ॥३९४॥ | होइ कसाइवि पढम इयरमलेसीवि जं सलेसं तु | गहणपरिणामफंदणरूवं तं जोगओ तिविहं ॥ ३९५ ॥ जोगो विरियं थामो
||३०६॥ उच्छाह परकमो तहा चेट्ठा । सत्ती सामत्थंति य जोगस्स हवंति पज्जाया ॥ ३९६ ॥ पनाए अविभाग जहन्नविरियस्स बीरियं / | छिन्नं । एकेकस्स पएसस्स असंखलोगप्पएससमं ॥ ३९७ ॥ सव्वप्पवीरिएहिं जीवपएसेहिं वग्गणा पदमा। बीयाइ वग्गणाओ
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