Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 309
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsul Gyanmandie श्रीचन्द्र-16 पल्लासंखियभागेण, पूरिए, इत्थवियस्स ।। ३६५ ॥ जो सव्वसकमेण इत्थी परिसम्मि छह सो सामी। पुरिसस्स कम्मसंजलणयाण उद्वलनादि र्षिकृते | सो चेव संछोभ ।। ३६६ ॥ चउरुवसामिय मोह, जसुच्चसायाण सुहमखवगते । जं असुभपगइदलियस्स सकमा हाइ एयासू पञ्चसंग्रहे F॥३६७ ॥ अद्धाजोगुक्कोसेहि देवनिरयाउगाण परमाए । परमं पएस सतं, जा पढमो उदयसमओ सा ।। २५८ ।। ससाउगाण बन्धद्वारे | नियगेसु चेव आगंतु पुब्धकोडीए । सायबहुलस्स अचिरा, बंधत जाव नोबट्टे ।। ।। ३६९ ॥ पूरित्तु पुब्बकोडीपुहुत्तनारयदुगस्स ॥३०५॥ बंधते । एवं पलियतिगते, सुरदुगवेउब्धियदुगाणं ॥ ३७० ॥ तमतमगो आइखिप्पं, सम्मत्तं लभिय समि बहुगर्छ । मणुयदुगस्सु कोस, सवज्जरिसभस्स बंधत ।। ३७१ ॥ बेछावादृचियाणं, मोहस्सुवसामगस्स चउखत्तो। सम्मधनबारसहं, खवगाम सबंधHI अंतम्मि ॥ ३७२ ॥ सुभथिरसुभधुबियाणं, एवं चिय होइ संतमुक्कोस । तित्थयराहाराण, नियनिया कोसबंधते ॥ ३७३ ।। तुल्ला हानपुंसगेणं, एगिदियथावरायवुज्जोया । मुहुमतिगं विगलावि य, तिरिमणुयचिरच्चिया नवरि ।। ३७४ ॥ आहण खावयकम्म, वापएससंतं जहन्नयं होड । नियसकमस्स विरमे, तस्सेव पिसेसियं मणस ॥ ३७५ ।। उबलमाणीणेगठि? उब्धलए जया दुसामइगा। थोवद्धमज्जियाणं, चिरकालं पालिआ अंते ॥ ३७६ ।। अंतिमलोभजसाणं, असेढिगाहापवत्तअन्तंमि । मिच्छत्तगए आहारगस्सा | सेसाणि नियगंते ॥ ३७७ ॥ चरमावलिप्पविट्ठा, गुणसेढी जासि अस्थि न य उदओ । आवलिगासमयसमा तासिं खलु फडड| गाई तु ।। ३७८ ॥ सब्बजहन्नपएसे, पएसडीएणतया भेया । ठिइठाणे ठिहठाणे, विनया खषियक माओ॥ ३७१।। एगढिइयं । एगाए फड्डग दासु होइ दोटिइगं । तिगमाईसुवि एवं, नेयं जावंति जासिं तु ।। ३८० ।। आवलिमेतुकास, फड्डगमाहस्स सब-II घाइण । तेरसनामतिनिहाण, जाव नो आवली गलइ ।। ३८१ ।। खीणद्धासंखंसं, खीणताणं तु फडडगुकास । उदयवइणगहिय, TEACHECRCHOREOGRESS For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372