Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 308
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र-18 आहारं, सासणमीसेयराण पुण तित्थं । उभये सति न मिच्छे, तित्थगरे अंतरमुहुत्तं ॥ ३४८ ॥ अन्नयरवेयणीयं, उच्चं नामस्स 8/ सत्तोत्कपिंकते है चरमउदयाओ । मणुयाउ अजोगता सेसा उ दुचरिमसमयंता ॥ ३४९ ।। मूलठिई अजहन्ना तिहा चउद्धा उ पढमयाण भवे । दायाद पञ्चसंग्रहे धुवसंतीणंपि तिहा, सेसविगप्पाऽधुवा दुविहा ।। ३५० ॥ बंधुदउकोसाणं उकोसठिई उ संतमुकोसं । तं पुण समयेणूण अणुदय-11 बन्धद्वारे उक्कोसबंधीण ॥ ३५१ ॥ उदसंकमउकोसाण आगमो सालिगो भवे जेट्ठो । सन्तं अणुदयसंकमउक्कोसाणं तु समऊणो ॥ ३५२॥ ॥३०४॥ उदयवईणेगठिई अणुदयवइयाण दुसमया एगा। होइ जहन्नं सन्तं दसह पुण संकमो चरिमो ॥ ३५३ ॥ हासाइ पुरिसकोहाइ, |तिनि संजलण जेण बंधुदए । वोच्छिन्ने संकामइ तेण इहं संकमो चरिमो ॥ ३५४ ।। जावेगिंदिजहन्ना नियगुकोसा हि ताव ठिइ-10 ठाणा । नेरंतरेण हेट्ठा खवणाइसु संतराइपि ॥ ३५५ ॥ संकमतुल्लं अणुभागसंतयं नवरि देसघाइणं । हासाइरहियाणं जहन्नयं एगठाणं तु ॥ ३५६ ॥ मणनाणे दुट्टाणं देसघाई य सामिणो खवगा। अंतिमसमये सम्मत्तवेयखीणन्तलोभाणं ।। ३५७ ॥ मइसुयचक्खुअचक्खू, सुयसम्मत्तस्स जेट्ठलद्धिस्स । परमोहिस्सोहिदुगे, मणनाणे विपुलनाणिस्स ॥ ३५८ ॥ अणुभागट्ठाणाई तिहा5 कमा ताणऽसंखगुणियाणि । बंधा उव्वट्टोबट्टणाउ अणुभागघायाओ ॥ ३५९ ॥ सत्तण्हं अजहन्नं, तिविहं सेसा दुहा पएसंमि । मूलपगईसु आउस्स, साइ अधुवा य सव्वेवि ।। ३६० ।। सुभधुवबंधितसाई, पणिदिचउरंसरिसभसायाण । संजलणुस्पाससुभखगइपुंपराघायणुक्कोसं ॥३६१॥ चउहा धुवसंतीणं, अणजससंजलणलोभवज्जाणं । तिविहमजहण्ण चउहा, इमाण छण्हं दुहाणुत्तं ॥३६२॥8 ॥३०४॥ HE संपुण्णगुणियकम्मो, पएसउकस्ससंतसामीओ। तस्सेव सत्तमीनिग्गयस्स काणं विसेसोवि ।। ३६३ ॥ मिच्छमीसेहिं कमसो, लि। संपक्खित्तेहिं मीससम्मसु । वरिसधरस्स उ ईसाणगस्स चरिमम्मि समयम्मि ॥ ३६४ ॥ ईसाणे पूरित्ता, नपुंसगं तो असंखवासीसु । KARANG For Private and Personal Use Only

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