Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 296
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit S र्षिकृते श्रीचन्द्रपञ्चसंग्रहे बन्धद्वारे ॥२९॥ A CROREOCN तरायपयडीओ । चउठाणपरिणयाओ, दुतिचउठाणाउ सेसाओ ॥ १४८॥ उप्पलभूर्मावालुयजलरेहासारससंपराएमुं । चउठाणाई ४ारसबन्धः असुभाण, सेसयाणं तु वच्चासो ।। १४९ ॥ घोसाडइनिंबुवमो, असुभाण सुभाण खीरखंडुवमो । एगट्ठाणो उ रसो, अणं गुणियात ध्रुवा| कमेणियरे ॥ १५० ।। उच्चं तित्थं सम्मं, मीसं वेउव्विछक्कमाऊणि । मणुदुगआहारदुर्ग, अट्ठारस अधुवसत्ताओ ।। १५१ ॥ पढम-12 ध्रुवादि | कसायसमेया, एयाओ आउतित्थवज्जाओ । सत्तरसुब्बलणाओ, तिगेसु गइआणुपुब्बाऊ ॥ १५२ ॥ नियहेउसंभववि हु, भय-18 णिज्जो जाण होइ पयडीणं । बंधो ता अधुवाओ, धुवा अभयणिज्जबंधाओ ।। १५३ ॥ दब्बं खेतं कालो, भवो य भावो य हेयवो ते | पंच । हेउसमासेणुदओ, जायइ सव्वाण पगईणं ।। १५४ ॥ अघोच्छिन्नो उदओ, जाणं पगईण ता धुवोदइया । वोच्छिन्नोऽवि हु संभवइ, जाण अधुवोदया ताओ ।। १५५ ।। असुभसुभत्तणघाइत्तणाइं रसभेयओ मुणिज्जाहि । सविसयघायणभेएण वावि घाइ-IK त्तणं नेयं ।। १५६ ॥ जो घाएइ सविसयं, सयलं सो होइ सव्वघाइरसो। सो निच्छिद्दो निद्धो,तणुओ फलिहम्भहरविमलो ॥१५७॥ देसविघाइत्तणओ, इयरो कडकंबलंसुसंकासो। विविहबहुछिद्दभरिओ, अप्पसिणेहो अविमलो य ॥१५८ ॥ जाण न विसओ घाइत्तणमि ताणंपि सब्बघाइरसो । जायइ घाइगगासेण, चोरया वेह चोराणं । १५९ ।। घाइखओवसमेणं, सम्मचरित्ताई जाई | जीवस्स । ताणं हणंति देस, संजणा नोकसाया य ।। १६० ॥ विणिवारिय जा गच्छइ, बंधं उदयं च अभपगईए । सा हु परियत्तमाणी, अणिवारेंती अपरिवत्ता ॥ १६१ ।। दुविहा विवागओ पुण, हेउविवागाउ रणविवागाउ । एकेकावि य| चउहा, जओ चसद्दो विगप्पेण ।। १६२ ॥ जा जं समेच्च हेउं, विवागउदयं उर्वति पगईओ । ता तविवागसना सेसाभहाणाई । सुगमाई ॥ १६३ ।। अरइरईणं उदओ, किन्न भवे पोग्गलाणि संपप्प | अप्पुढेहिवि किन्नो एवं कोहाइयाणपि ॥ १६४ ' आउव्व। For Private and Personal Use Only

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