Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 300
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बन्धहेतुद्वार श्रीचन्द्र-ॐउ सब्वेवि । सत्तट्ठछगबंधगभंगा पज्जत्तसंनिमि ।। २११ ॥ जाव पमत्तो अट्ठण्हुदीरगो वेयाउबज्जाणं। सुहुमो मोहेण य जा, र्षिकृते | खीणो तप्परओ (उ) नामगोयाणं (गीतिः) ॥२१२॥ जावुदओ ताव उदीरणा वि वेयणीयआउवज्जाणं । अद्धावलियासेसे उदए उ पश्चसंग्रहे | उदीरणा नत्थि ।। २१३ ।। सायासायाऊणं, जाव पमत्तो अजोगि सेसुदओ। जा जोगि उईरिज्जइ, सेसुदया सोदयं जाव ॥२१४।। बन्धद्वारे | निदाउदयवईणं, समिच्छपुरिसाण एगचत्ताणं । एयाणं चिय भज्जा, उदीरणा उदए नबासि ॥ २१५ ॥ होइ अणाइअणंतो, ॥२९६॥ अणाइसंतो य साइसंतो य । बंधो अभवभयोवसंतजीवेसु इइ तिविहो ॥ २१६ ॥ पयडीठिईपएसाणुभागभेया चउबिहेक्केको । उकोसाणुकोसगजहन्नअजहन्नया तेसिं ।। २१७ ।। तेऽवि हु साइअणाईधुवअद्धवभेयओ पुणो चउहा । ते दुविहा पुण नेया, मूलुत्तर|पयइभेएणं ॥२१८ ॥ भूओगारप्पयरग, अव्यत्त अवडिओ य विनेया । मूलुत्तरपगईबंधणासिया ते इमे सुणसु ॥ २१९ ॥ इगछाइ मूलियाण, बंधट्ठाणा हवंति चत्तारि । अब्बंधगो न बंधइ, इइ अब्बत्तो अओ नस्थि ॥ २२० ॥ भूओगारप्प घरगअव्वत्तअवट्ठिया जहा बंधे । उदए उदीरणाए, संते जहसंभव नेया ॥ २२१ ।। बंधट्ठाणा तिदसट्ठ दसणावरणमोहनामाणं । सेसाणेग| मवट्ठियबंधो सव्वत्थ ठाणसमो ॥ २२२ । भूओगारा दो नव, छ यप्पतरा दु अट्ठ सत्त कमा । मिच्छाओ सासणत्तं न एकतीसेक्कगुरु जम्हा ॥ २२३ ॥ चउ छ बिइए नामंमि एग गुणतीस तीस अब्बत्ता । इग सत्तरसयमोहे, एकेक्को तइयवज्जाणं ॥ २२४ ॥ इगसयरेगुत्तर जा, दुवीस छब्बीस तह तिपन्नाई। जा चोवत्तरि बावटिरहियबंधाओ गुणतीस ।। २२५ । एक्कार बार तिचउकवीस गुणतीसओ य चउर्तासा । चउआला गुणसट्ठी, उदयट्ठाणाई छब्बीस ॥२२६॥ भूयप्पयरा इगिचउवीसं जन्नेइ केवली छउमं । अजओ य केवलितं, तित्थयरियरा व अन्नोन्नं ॥ २२ ॥ एक्कारबारसासी, इगि चउ पंचाहिया य चउणउई । एत्तो ॥२९६॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372