Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

View full book text
Previous | Next

Page 305
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रीचन्द्र- र्षिकृते पञ्चसंग्रहे बन्धद्वारे RECENECES CCI ॥३०॥ ताण तत्थेव ॥ २९६ ।। निययबंधचुयाणं, णुकोसो साइ णाइ तमपचे । साई अधुवोऽधुवबंधियाण धुवबंधणा चेव ॥२९७॥ उदयअप्पतरपगइबन्धे, उकडजोगी उ सन्निपज्जत्तो । कुणइ पएसुक्कोसं, जहन्नयं तस्स बच्चासे ।। २९८ ।। सत्तविहबन्ध मिच्छे, परमो निरूपणं अणमिच्छथीणगिद्धीर्ण । उकोससंकिलिटे, जहन्नओ नामधुवियाणं ।। २९९ ।। समयादसंखकाल, तिरिदुगनीयाणि जाव बझंति । वेउब्बियदेवदुर्ग, पल्लतिग आउ अंतमुहू ।। ३०० ।। देसूणपुचकोडी, सायं तहऽसंखपोग्गला उरलं । परघाउस्सासतसचउपणिदि पणसीय अयरसयं ॥ ३०१ ॥ चउरंसउच्चसुभखगइपुरिससुस्सरतिगाण छावट्ठी । बिउणा मणुदुगउरलंगरिसहतित्थाण तेत्तीसा |॥ ३०२ ॥ ससाणतमुहुर्त, समया तित्थाउगाण अंतमुह । बन्धो जहन्नओवि ह, भंगतिग निच्चबन्धीण ।। ३०३॥ हाइ अणाइ अणंतो, अणाइसंतो धुवोदयाणुदओ । साइसपज्जवसाणो, अधुवाणं तह य मिच्छस्स ।। ३०४ ॥ पयडिठिईमाईया, भेया पुव्वुत्तया इहं नेया । उद्दीरणउदयाणं, जे नाणत्तं तयं वोच्छं ।। ३०५ ॥ चरमोदयमुच्चाणं, अजोगिकालं उदीरणाविरहे । देसूणपुब्बकोडी, मणुयाउगवेयणीयाण ।। ३०६ ॥ तइयच्चिय पज्जत्ती, जा ता निद्दाण होइ पंचण्डं। उदओ आवलिअंते, तेवीसाए उ सेसाण ॥ ३०७ ॥ मोहे चउहा तिविहो व सेससत्तण्ह मूलपगईणं । मिच्छत्तुदओ चउहा, अधुवधुवाणं दुविहतिविहो । ३०८ ॥ उदओ ठिइक्खएण, संपत्तीए सभावतो पढमो । सति तम्मि भवे बीओ, पओगओदीरणा उदओ ।। ३०९ ।। उद्दीरणजोग्गाण, अब्भहियठिईए उदयजोग्गाओ । हस्सुदओ एगठिइणं, निद्णाए गियालाए ॥ ३१० ।। अणुभागुदओवि उदीरणाए तुल्लो जहन्नयं| नवरं । आवलिगंते सम्मत्तवेयखीणतलोभाण ॥ ३११ ॥ अजहन्नोऽणुक्कोसो, चउह तिहा छण्ह चउविहो मोहे । आउस्स साइ अधुवा, 18॥३०॥ सेसविअप्पा य सव्वेसि ॥ ३१२ ।। अजहन्नाणुकोसो, धुवोदयाणं चओ तिहा चउहा । मिच्छत्ते सेसासिं, दुविहा सव्वे य सेसाणं 56 For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372