Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri, 
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 282
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatrth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandie कर्मप्रकृती ॥२७८॥ 564561599 य सम्बेसि ॥ ३९२ ।। अजहन्नाणुक्कोसो सगयालाए चउत्तिहा चउहा । मिच्छत्ते सेसासि दुविहा सध्वे य सेसाणं ॥३९३ ॥ सम्मतुप्पा सावय विरए संजोयणाविणासे य । दसणमोहक्खवगे कसाय उवसामगुवसंते ॥ ३९४ ॥ खवगे य खीणमोहे जिणे य दुविहे | असंखगुणसेढी । उदओ तधिवरीओ कालो संखेज्जगुणसेढो ॥ ३९५ ।। तित्रिवि पढमिल्लाओ मिच्छत्तगएवि होज्ज अनभवे । पगयं तु गुणियकम्मे गुणसेढीसीसगाणुदये॥ ३९६ ।। आवरणविग्धमोहाण जिणोदइयाण वावि नियगते । लहुखवणाए ओहीण:&ाणोलिद्धिस्स उक्कस्सो ॥३९७॥ उवसंतपढमगुणसेढोए निदादुगस्स तस्सेव । पावइ सीसगमुदयंति जा य देवस्स सुरनवगे ॥३९८॥ मिच्छत्तमीसणंताणुबंधिअसमत्तथोणगिद्धोणं । तिरिउदएगताण य विइया तइया य गुणसेढी ।। ३९९ ॥ अंतरकरणं होहित्ति जा य XT देवस्स तं मुहुर्ततो । अट्ठण्ह कसायाणं छहंपि य नोकसायाण ॥४०॥ हस्सठिई बंधित्ता अद्धाजोगाइठिहानिसेगाणं । उकस्सपए | पढमोदयम्मि सुरनारगाऊणं ॥ ४०१ ॥ अद्धाजोगुकोसो बंधित्ता भोगभूमिगेसु लहुँ । सबप्पजीवियं वज्जइत्तु ओवट्टिया दोण्हं ॥ ४०२ ॥ भगणाएज्जाजस गइदुगअणुपुचितिगसनीयाणं । दसणमोहक्खवणं देसविरइ विरइ गुणसेढी ॥ ४०३ ॥ संघयणपंचगस्स य विइयाई तिनि होति गुणसेढी । आहारगउज्जोयाणुत्तरतणु अप्पमत्तस्स ॥४०४॥ बेइंदिय थावरगो कम्मं काऊण तस्सम खिप्पं । आयावस्स उ तब्बेइ पढमसमयम्मि बट्टतो ॥ ४०५ ॥ पगयं तु खवियकम्मे जहनसामी जहन्नदेवाठिइ । भिन्नमुहुत्ते सेसे मिच्छत्तगतो अतिकिलिट्ठो ॥ ४०६ ॥ कालगएगिदियगो पढमे समये व मइसुयावरणे । केवलदुगमणपज्जवचक्खुअचक्खूण आवग्णा ॥ ४.७ । ओहाण संजमाओ देवत्तगए गयस्स मिच्छत्तं । उकोसठिईबंधे विकड्डणा आलिगं गंतुं ॥ ४०८ ॥ | वेयणियंतरसोगारउच्च ओहि ब्व निद्दपयला य । उकस्स ठिईबंधा पडिभग्गपवेइया नवरं ॥ ४०९ ॥ वरिसवरतिरियथावरनीयपि ॥२७८॥ For Private and Personal Use Only

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