Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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कर्मप्रकृती
संक्रमकरणं
॥२६५॥
ASEARSACARRESSES
परित्तिओ वा अबंधेवि ॥ १७१ ॥ थोवोवहारकालो गुणसंकमणेणऽसंखगुणणाए । सेसस्स अहापवत्ते विज्झाए उब्वलणनामे
॥ १७२ ॥ पल्लासखियभागेणहापवत्तेण सेसगवहारो । उचलणेणीव थिबुगो अणुइन्नाए उ जं उदए ।। १७३ ।। धुवसंकमद अजहनोऽणुक्कोसो तासि वा विवज्जित्तु । आवरणनवगविग्धं ओरालियसत्तगं चेव १७४ ।। साइयमाइ चउद्धा सेसविगप्पा य
सेसगाणं च । सबविगप्पा नेया साई अधुवा पएसम्मि ॥ १७५ ।। जो बायरतसकालेणूणं कम्मट्टिइं तु पुढवीए । बायरपज्जत्तापज्जनगदीहेयरद्धासु ॥ १७६ ।। जोगकसाउकोसो बहुसो निच्चमावि आउबंधं व | जोगजहण्णेणुवरिल्ल ठिइनिसेगं बहुं किच्चा | ॥ १७७ ॥ बायरतसेसु तकालमेवमंते य सत्तमखिइए । सबलहुं पज्जत्ता जोगकसायाहिओ बहुसो ॥ १७८ ।। जोगजवमज्झउवरि | मुहुत्तमच्छित्तु जीवियवसाणे । तिचरिमदुचरिमसमए पूरित्तु कसायउक्कस्सं ॥ १७९ ॥ जोगुक्कोसं चरिमदुचरिमे समए य चरिमस
मयम्मि | संपुण्णगुणियकम्मो पगयं तेणेह सामित्ते ॥ १८० ॥ तत्तो उव्वट्टित्ता आवलिगासमयतब्भवत्थस्स | आवरणविग्घचोद्द| सगोरालियसत्त उक्कोसो ॥ १८१ ॥ कम्मचउक्के असुभाण बज्झमाणीण सुहुमरागते । संछोभणमि नियगे चउवीसाए नियहिस्स
॥ १८२॥ तत्तो अणंतरागयसमयादुक्कस्स सायबंधद्धं । बंधिय असायबंधालिगंतसमयम्मि सायस्स ।। १८३ ।। संछोभणाए दोटू ण्हं मोहाणं वेयगस्स खणसेसे । उप्पाइय सम्मत्तं मिच्छत्तगए तमतमाए ।। १८४ ।। भित्रमुहुत्ते सेसे तच्चरमावस्सगाणि किच्चे
त्थ । संजोयणा विसंजोयगस्स संछोभणा एसें ॥१८५।। ईसाणागयपुरिसस्स इत्थियाए व अट्ठवासाए। मासपुहुत्तम्भहिए नपुंसगे सबसंकमणे ॥ १८६ ।। इत्थीए भोगभूमिसु जीविय वासाणसंखियाणि तओ । हस्सठिई देवत्ता सबलहुं सव्वसंछोभे ॥१८७॥ बरिसवरित्थिं पूरिय सम्मत्तमसंखवासियं लहिउँ । गंता मिच्छत्तमओ जहन्नदेवट्टिई भोच्चा ।। १८८ ॥ आगंतु लहुं पुरिसं संछु
।।२६५॥
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