Book Title: Panchashak Mulam
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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संक्रमकरणं
कर्मप्रकृतौ ॥२६४॥
RROSALAROKAR
मइच्छिऊण उक्कोसं । जाव न घाएइ तगं संकमइ य आमुहुत्तंतो ।। १५४ ॥ असुभाणं अन्नयरो सुहुम अपज्जत्तगाइ मिच्छो य ।। बज्जिय असंखवासाउए य मणुओववाए य ।। १५५ ।। सव्वत्थायावुज्जोयमणुयगइ पंचगाण आऊणं । समयाहिगालिगा सेसयत्ति सेसाण जोगंता ।। १५६ ॥ खवगस्संतरकरणे अकए घाइण सुहुमकम्मुवरि । केवलिणो णतगुणं असनिओ सेसअसुभाणं ॥ १५७ ।। सम्माद्दिट्टि न हणई सुभाणुभागे असम्मबिट्ठीवि । सम्मत्तमीसगाणं उक्कोसं वज्जिया खवणं ॥ १५८ ॥ अंतरकरणा उवरिं जहन्नठिइसंकमो उ जस्स जहिं । घाईणं नियगचरमरसखंडे दिट्ठिमोहदुगे ॥ १५९ ॥ आऊण जहन्नठिई बंधिय जावत्थि संकमो ताव । उव्वलणतित्थसंजोयणा य पढमालियं गंतुं ॥ १६० ॥ सेसाण सुहुम हयसंतकम्मिगो तस्स हेट्ठओ जाव । बंधइ तावं एगिदिओ वणेगिंदिओ वावि ॥१६१।। जं दलियमनपगई निज्जइ सो संकमो पएसस्स । उव्वलणो विज्झाओ अहापवत्तो गुणो सव्वो ॥१६२।।
आहारतणू भिन्नमुहुत्ता अविरईगओ पउव्वलए । जा अविरतो त्ति उव्वलइ पल्लभागे असंखतमे ॥ १६३ ॥ अंतोमुहुत्तमद्धं पल्ला| संखिज्जमित्तठिइखंडं । उकिरइ पुणोवि तहा ऊणूणमसंखगुणहं जा ॥१६४॥ तं दलियं सहाणे समए समए असंखगुणियाए । सेढीए परठाणे विसेसहाणीए संछुभइ ॥ १६५ ॥ जं दुचरमस्स चरिमे अन्नं संकमइ तेण सव्वंपि । अंगुलअसंखभागेण हीरए एस उव्वलणा ॥ १६६ ॥ चरममसखिजगुणं अणुसमयमसंखगुणियसेढीए । देइ परत्थाणे एव संछुभतीणेवमवि कसिणो ॥ १६७ ॥ एवं मिच्छद्दिहिस्स वेयगं मीसगं ततो पच्छा । एगिदियस्स सुरदुगमओ सव्वेउव्वि निरयदुगं ।। १६८ ॥ सुहुमतसेगो उत्तममओ य नरदुगमहानियट्टिम्मि । छत्तीसाए नियगे संजोयण दिडिजुयले य ।। १६९ ॥ जासि न बंधो गुणभवपच्चओ तासि होइ विज्झाओ । अंगुलअसंखभागो ववहारो तेण सेसस्स ।। १७० ॥ गुणसंकमो अबझंतिगाण असुभाणपुव्वकरणाई । बंधे अहापवत्तो
CARROR
२६४॥
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