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॥ॐ॥ नवतत्त्व
जीवाजीवा पुण्णं,
पावासवसंवरो य निजरणा। बंधो मुक्खो य तहा,
नव तत्ता हुंति नायब्वा ॥१॥ जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर निर्जरा, बन्ध और मोक्ष ये नवतत्त्व जानने योग्य हैं ।। १ ॥
(१) चेतना लक्षणो जीवः-जिसमें चेतना-ज्ञान हो, उसे जीव कहते हैं । (२) जिसमें चेतना-ज्ञान नहीं है, उसे अजीव कहते हैं । (३) जिस कर्म से जीव सुख पाता है, उस कर्म का नाम पुण्य है। (४) जिस कर्म से जीव दुःख पाता है, उस कर्म का नाम पाप है। (५) प्रात्मा से सम्बन्ध ( मेल) करने के लिये जिसके द्वारा पुद्गलद्रव्य पाते हैं, उसे प्रास्रव कहते हैं। (६) आत्मा से पुद्गल
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