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(५२)
*नवतस*
(२) पिपासा-जबतक प्रचित्त जल न मिले तबतक प्यासके बेगको सहना।
(३) शीव -कड़ी ठएड पड़ती हो तोभी भाग जलाकर तापे नहीं, न दूसरेकी जलाई भागसे भी शीत दूर करे। अकल्पनीय वखोंकी इच्छा न करे । जो कुछ फटे पुराने वन अपने पास हों उसीसे काम निकाले और ठण्डको शानचित्तसे सहन करे।
(४) उष्ण-अत्यन्त गरमी पड़ती हो तोभी साधु स्नान करनेकी इच्छा न करे । छत्र धारण न करे। पंखेकी हवा न करे, गरमीको सहन करे।
(५) देश-वर्षाऋतुमें मच्छर आदि जीवोंका बहुत उपद्रव रहता है, कार्योत्सर्ग आदि धर्मक्रियाओं में वे जन्तु काटते हैं, उसे सहन करे।
(६) अचेल-चेलका अर्थ है वस्त्र, उसका प्रभाव, अचेल कहलाता है। यहाँ अलका मतलब सर्वथा वस्त्रोंका प्रभाव नहीं समझना चाहिये किन्तु आगममें साधुओं को जितने वस्त्र रखनेको आज्ञा है उतने ही रक्खे। कीमती नये वस्त्रोंकी इच्छा न करे, जो कुछ फटे पुराने वस्त्र हों उनमें सन्तोष रक्खे।
(७) अरति-अपने मनके माफिक उपाश्रय, आहार भादि न मिलनेसे दुखो न होवे ।
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