Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 90
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir 00000000000000 (७८) * नवतत्व * है, शेष मार्गणाओं के द्वारा नहीं ॥४६॥ बद्रव्यका जिसके जरिये विचार किया जाय उसे 'मार्गणा' कहते हैं। ___ मार्गणा के मूलभूत चौदह भेद हैं और उत्तर भेद बासठ। (१) नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव इन चार गतियों में से सिर्फ मनुष्यगति से मोक्ष मिलता है, अन्य तीन गतियों से नहीं। (२) इन्द्रियमार्गणा के पांच भेद है, एकेन्द्रिय, दोन्द्रिय, त्रोन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय । इनमें से पंचेन्द्रियद्वारमें मोक्ष होता है अर्थात् पांचों इन्द्रियाँ पाया हुआ जोव मोक्ष जा सकता है। (३) कायमार्गणा के छह भेद हैं, पृथ्वीकाय, अप्काय, तेउकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय और सकाय । इनमें से त्रसकाय के जीक मोक्ष जा सकते हैं, अन्यकाय के नहीं। (४) भवसिद्धिक मार्गणो के दो भेद हैं, भवसिद्धिक ओर अभवसिद्धिक । इनमें से भवसिद्धिक अर्थात् भव्य जीव मोक्ष जा सकते हैं, अभव्य नहीं। (५) संज्ञीमार्गणा के दो भेद हैं, संज्ञीमार्गणा और For Private And Personal

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