Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 99
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir (८७) Co00000000००००००००००००००००००००००००००००००० * मोक्षतस्त्र * हुआ हो, उनका अर्धपुद्गलपरावर्त संसार बाकी रहा है ॥ ५३॥ सिर्फ अन्तमुहर्त तक जिस जीवका परिणाम, सम्यक्त्वरूप होगया हो, उस जीवको अधपुद्गलपरावर्त तक संसारमें भ्रमण करना पड़ेगा, बाद अवश्य मोक्ष मिलेगा। यह कालपरिमाण उस जीवके लिये कहा गया है जिसने बहुत आशातना की हो, या करनेवाला हो । शुद्ध सम्यक्त्वका आगधन करनेवाला जीव तो, उसी जन्ममें, कोई जीव तीसरे जन्म में, कोई सातवें जन्ममें, कोई पाठवें जन्ममें इस तरह शीघ्र मुक्ति पाता है । उस्सप्पिणी अणंता, ____ पुग्गलपरिअट्टो मुणेअन्यो। तेणंता तीद्धा, अणागयद्धा अणंतगुणा ॥ ५४॥ "इस गाथामें पुद्गलपरावर्तनका स्वरूप कहा है।" अनन्त उत्सर्पिणी और अनन्त अवसर्पिणी बीत जोनेपर एक 'पुद्गलपरावर्तन होता है, इस तरहके अनन्त For Private And Personal

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