Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 101
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * मोचतत्त्व (८६) (४) चतुर्विध संघकी स्थापना करने के पहले जिन्होंने मुक्ति पाई वे 'अतीर्थसिद्ध, जैसे मरुदेवी आदि। (५) गृहस्थ के वेष में जिन्होंने मुक्ति पाई वे 'गृहस्थलिंगसिद्ध, जैसे मरुदेवी माता आदि।। (६) सन्यासी श्रादि अन्यवेषधारी साधुओं ने मुक्ति पाई वे 'अन्यलिंगसिद्ध, जैसे 'वल्कलचीरी' आदि। ___ (७) रजोहरण आदि अपने वेष में रहकर जिन्होंने मुक्ति पाई वे 'स्वलिंगसिद्ध, जैसे जैनवेषधारी साधु । (८) स्त्रीलिंगसिद्ध, जैसे चन्दनवाला आदि । (8) 'पुरुषलिंगसिद्ध, जैसे गौतम आदि। (१०) 'नपुन्सकलिंगसिद्ध, जैसे भीष्म आदि । (११) किसी अनित्य पदार्थ को देख कर विचार करते करते जिन्हें बोध हुआ बाद कंवलज्ञान प्राप्त हुश्रा और सिद्ध हुए वे 'प्रत्येकबुद्ध, जैसे करकण्डू राजा श्रादि। ___ करकण्डू राजा को सन्ध्या के समय आकाश में गन्धर्व नगरों का (बादलों का नगर) बनना और मिटना देखकर बैराग्य हो गया था कि संसार के सब पदार्थ इसी तरह नाशवान है। For Private And Personal

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