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* नवतत्त्व * 10.००००००००००००००००००००००००००००००००००००००
'इस गाथा में सत्पदप्ररूपणाद्वार का स्वरूप कहा है।"
मोक्ष, सत् अर्थात् विद्यमान, है क्योंकि उसका वाचक एक पद है, आकाशकुसुम की तरह वह अविद्यमान नहीं है; मार्गणा द्वारा मोक्ष की प्ररूपणा (विचार) को जाती है ॥३३॥ ___एक पदका वाच्य अर्थ अवश्य होता है; घट, पट
आदि एक पदवाले शब्द हैं उनका वाच्य अर्थ भी विद्यमान है। दो पदवाले शब्दों के वाच्य अर्थ होते भो हैं, और नहीं भो होते-जैसे 'गोशृंग' 'महिषशृङ्ग। ये शब्द. दो दो पदों से बने हैं, इनका वाच्य अर्थ, 'गायका सींग, भैंस का सींग' प्रसिद्ध है । 'खर,ग', 'अश्वशृंग' ये दो शब्द भी दो दो पदों से बने हुये हैं परन्तु इनके वाच्य अर्थ 'गधेको सींग', 'धोड़े का सींग' अविद्यमान हैं। मोक्ष शब्द एकपदवाला होनेसे उसका वाच्य अर्थ भी घट पट आदि पदार्थो की तरह विद्यमान है। इस प्रकार अनुमान प्रमाणसे मोक्ष' है, यह बात सिद्ध होती है ॥४४॥
चौदह मार्गणाओं के नाम । गई इंदिए काए
जोए वेए कसाय नाणे अ।
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