Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 93
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org * मोक्षतख * (८१) 00000000000000 अनन्त हैं । द्रव्य प्रमाण याने सिद्धों के जीव कितने हैं उसका विचार करना | क्षेत्रद्वारके विचारसे लोकाकाशके श्रसंख्यातवें भाग में एक सिद्ध रहता है, उसी तरह सब सिद्ध भी, लोकाकाश के श्रसंख्यातवें भागमें रहते हैं; परन्तु एक सिद्धसे व्याप्त क्षेत्रकी अपेक्षा, सब सिद्धोंसे व्याप्त क्षेत्रका परिमाण अधिक है ।। ४७ ।। van R फुसणा हा कालो. Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir पडिवायाभावाओ, इग सिद्ध पहुच साइयांतो । सिद्धाणं अंतरं नत्थि ॥ ४८ ॥ 1 "इस गाथा में स्पर्शना, काल और अन्तर, ये तीन द्वार कहे हैं । " ( १ ) क्षेत्र से सिद्ध जीवोंकी स्पर्शना अधिक है एक सिद्धकी अपेक्षासे काल, सादि ( आदि सहित ) अनन्त होता है। सिद्धगतिमें गये हुए जीवका पतन नहीं होता इसलिये अन्तर नहीं है ॥ ४८ ॥ जीव, कर्म से मुक्त होकर जिस श्राकाशक्षेत्र में रहते हैं, उसे सिद्धक्षेत्र कहते हैं । उसका (सिद्धाकाशक्षेत्रका ) प्रमाण पैंतालीस लाख योजन लंबा चौड़ा है, उस क्षेत्र में For Private And Personal

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