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* मोक्षतख *
(८१)
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अनन्त हैं । द्रव्य प्रमाण याने सिद्धों के जीव कितने हैं उसका विचार करना |
क्षेत्रद्वारके विचारसे लोकाकाशके श्रसंख्यातवें भाग में एक सिद्ध रहता है, उसी तरह सब सिद्ध भी, लोकाकाश के श्रसंख्यातवें भागमें रहते हैं; परन्तु एक सिद्धसे व्याप्त क्षेत्रकी अपेक्षा, सब सिद्धोंसे व्याप्त क्षेत्रका परिमाण अधिक है ।। ४७ ।।
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फुसणा हा कालो.
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पडिवायाभावाओ,
इग सिद्ध पहुच साइयांतो ।
सिद्धाणं अंतरं नत्थि ॥ ४८ ॥
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"इस गाथा में स्पर्शना, काल और अन्तर, ये तीन द्वार कहे हैं । " ( १ ) क्षेत्र से सिद्ध जीवोंकी स्पर्शना अधिक है एक सिद्धकी अपेक्षासे काल, सादि ( आदि सहित ) अनन्त होता है। सिद्धगतिमें गये हुए जीवका पतन नहीं होता इसलिये अन्तर नहीं है ॥ ४८ ॥
जीव, कर्म से मुक्त होकर जिस श्राकाशक्षेत्र में रहते हैं, उसे सिद्धक्षेत्र कहते हैं । उसका (सिद्धाकाशक्षेत्रका ) प्रमाण पैंतालीस लाख योजन लंबा चौड़ा है, उस क्षेत्र में
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