Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 96
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * नववव .............m.ncom.m................. सायिक भाव ये हैं; दान, लाम, मोग, उपभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, चारित्र, केवलज्ञान और केवलदर्शन । किसी कर्मके क्षयसे होनवाले भावको क्षायिक भाव कहते हैं। पारिणामिक भाव ये हैं; भव्यत्व, अभव्यत्व और जीवितव्य । ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य रूप भावप्राण, सिद्ध जीवोंके हैं। पाँच इन्द्रियाँ, मनोबल, वचनबल, कायबल, श्वासोच्छवास और श्रायु, ये दस द्रव्यप्राण सिद्धोंको नहीं होते। उपशम क्षय, और क्षयोपशमकी अपेक्षा न रखनेवाले जीवके स्वभावको पारिणामिक भाव थोवा नपुंससिद्धा, थीनरमिद्धा कमेण संखगुणा । इन मुक्खतत्तमेचं, नव तत्ता लेसो भणिया ॥ ५० ॥ "इस गाथामें अल्पबहुत्वद्वार कहा है।" नपुन्सकसिद्ध, कम हैं; उससे स्त्रीसिद्ध, संख्यात गुण अधिक हैं; स्त्रीसिद्धसे पुरुषसिद्ध संख्यात गुण अधिक है। For Private And Personal

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