Book Title: Navtattva
Author(s): Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir * मोक्षतत्व * (७५) ०००००००००००००००००० ०००००.०....००००००० जिघन्यस्थिति पाठ मुहूर्त की है । शेष कर्मों की अर्थात् ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीयायु, और अन्तराय इन पांच कर्मों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है ॥४२॥ __ मोक्षतत्त्व। संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं च खित्त फुसणा य। कालो अ अंतर भाग, भावे अप्पाबहुँ चेव ॥ ४३ ॥ "इस गाथामें मोक्षके नव भेद कहे हैं।" सत्पदप्ररूपणाद्वार, द्रव्यप्रमाणद्वार, क्षेत्रद्वार, स्पर्शनाद्वार, कालद्वार, अन्तरद्वार, भागद्वार, भावद्वार और अल्पबहुत्वद्वार, ये मोक्षके नव द्वार हैं अर्थात् मोक्षका स्वरूप समझनेके नक भेद हैं ॥ ४३ ॥ संतं सुद्धपयत्ता, विज्जंतं खकुसुमब्व न असंतं । मुक्खत्ति पयं तस उ, परूवणा मग्गणाईहिं ॥४४॥ For Private And Personal

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